Yogi Adityanath

योगी आदित्यनाथ की कुण्डली

जन्मस्थान पञ्चुर ३०:११:२९ ; ७८:४१:०९ ॥
जन्मकाल २९ दिस⋅ १९७१,सायं १९:४७ ॥

पराशर ऋषि के अनुसार योगी आदित्यनाथ की कुण्डली में विंशोत्तरी की अपेक्षा अष्टोत्तरी दशा प्रभावी है । (अष्टोत्तरी दशा की दोनों शर्तें पूरी हों तो सामान्यतः विंशोत्तरी मत देखें;विंशोत्तरी में ग्रह तत्कालीन अष्टोत्तरी के ग्रह की तुलना में बहुत अधिक बली हो तभी विंशोत्तरी का प्रभाव रहेगा । परन्तु विंशोत्तरी के अशक्त ग्रहों का भी अल्प प्रभाव सभी जातकों को मिलता ही है । अष्टोत्तरी की दोनों शर्तें पूरी हों तो उसके अशक्त ग्रह भी अधिक प्रभावी होते हैं ।)। अष्टोत्तरी दशा का प्रयोग आधुनिक युग में लोग त्याग चुके हैं । यही कारण है कि विंशोत्तरी के आधार पर योगी आदित्यनाथ के जीवन की घटनायें मेल नहीं खाती तो कुछ लोगों ने मनमाना जन्मकाल प्रचारित कर दिया,परन्तु उससे भी घटनायें मेल नहीं खातीं ।

दूसरी त्रुटि लोग यह करते हैं कि केवल लग्नकुण्डली (प्रथम वर्ग) द्वारा ही सबकुछ जानना चाहते हैं,जबकि लग्नकुण्डली दैहिक सुखदुःख हेतु ही प्रभावी है । साधुओं की कुण्डली में दैहिक सुख सामान्यतः नहीं रहता अथवा रहने पर भी उसपर ध्यान नहीं देते । दैहिक सुखदुःख को सीमित अर्थ में न लें,लग्नकुण्डली में बारहों भावों के विषयों का दैहिक सुखदुःख से ही मुख्य सम्बन्ध रहता है — इसपर ध्यान देना चाहिये ।

योगी आदित्यनाथ की लग्नकुण्डली (प्रथम वर्ग) में काम का सप्तम भाव अत्यधिक अशुभ है । उसमें मृत्युभाव के स्वामी अष्टमेश राहु दोहरे अशुभ योग चतुर्थेश−आयेश शुक्र के साथ हैं और सप्तमेश शनि भी अष्टमेश होकर अत्यधिक अशुभ है । अतः रत्तीभर भी कामसुख नहीं है ।

ऐसे लोग विवाह की गलती करें तो पत्नी से सम्बन्ध नहीं रहता तथा पत्नी के हाथों हत्या हो जाती है;पत्नी के ग्रह बली हों तो उसपर किसी को सन्देह भी नहीं होता । कामभाव का फलादेश धर्मभाव के साथ ही देखना चाहिये । कामभाव प्रबल और धर्मभाव अशुभ हो तो लफंगई का योग रहता है जैसा कि अन्तिम सन्देश वाले की कुण्डली में था । किन्तु कामभाव अशुभ एवं धर्मभाव शुभ एवं प्रबल हो तो ब्रह्मचर्य सहित धार्मिकता का योग बनता है,जैसा कि योगी आदित्यनाथ की लग्नकुण्डली में है । इनके धर्मभाव में शुभ राजयोगकारक मङ्गल है । मङ्गल का शुक्र एवं शनि से मैत्री का सम्बन्ध है जिसका अर्थ यह है कि मङ्गल में जितने अच्छे लक्षण हैं केवल उनका ही लाभ कामभाव को मिलेगा । अर्थात् ब्रह्मचर्य ।

किन्तु नवांश वर्ग देखे बिना केवल जन्मकुण्डली के आधार पर ऐसा निष्कर्ष नहीं निकालना चाहिये । योगी आदित्यनाथ की नवांश कुण्डली में आठ ग्रह राजयोगकारी हैं और नवम ग्रह शनि भी राजयोगकारक सूर्य में अस्त होने के कारण मुख्यतः शुभ ही है । इतनी प्रबल और शुभ नवांश कुण्डली मैंने आजतक नहीं देखी ।

जन्मकुण्डली में लग्नेश चन्द्र मूलत्रिकोणस्थ होकर आयभाव में अशुभ शत्रु शनि के साथ हैं । चन्द्रमा प्रबल तो हैं किन्तु अशुभ । चन्द्रमा का एकमात्र मित्र शुभ राजयोगकारक मङ्गल हैं,अतः पञ्चम,नवम तथा दशम पर चन्द्रमा का शुभ प्रभाव है,अन्य सभी भावों पर अशुभ प्रभाव है । सूर्य और बृहस्पति के कारण धन एवं धर्म के क्षेत्र में बहुत से शत्रु बनेंगे । चन्द्रमा की प्रबल महादशा में ही १९९१ से २००५ ई⋅ के बीच उत्थान का अवसर मिला । किन्तु मुख्यमन्त्री वाला योग लग्नकुण्डली के कारण नहीं है ।

नवांश का मुख्य क्षेत्र धर्म है जिसका प्रभाव जीवन के हर क्षेत्र पर पड़ता है । नवांश के धर्मभाव में शुभ और उच्च के बृहस्पति हैं । लग्नकुण्डली और नवांश में सप्तम भाव में शुक्र एवं राहु का भाव−वर्गोत्तम योग है । नवांश में शुक्र प्रबल तो हैं किन्तु अशुभ । परन्तु शुक्र से भी अधिक प्रबल नवमेश चन्द्रमा सप्तम में बैठकर शुक्र की अशुभता पर अङ्कुश लगा रहे हैं । नवांश में शुक्र की महादशा भी शैशवावस्था में ही बीत गयी । अतः सप्तम में अशुभ और प्रबल शुक्र वासना के भटकाव का फल नहीं दे सकें और ब्रह्मचर्य खण्डित नहीं हुआ । अभी नवांश में बुध की महादशा २००६ से २०२३ ई⋅ तक है । बुध स्वगृही आयेश हैं किन्तु मृत्युभाव के भी स्वामी हैं । अतः आय के क्षेत्र में जो विरोध करेगा उसका तो राम नाम सत्य है!बुलडोजर−योग अभी चल रहा है । बुध पर मूलत्रिकोणस्थ दशमेश सूर्य की मैत्री का प्रभाव राजनीति में सहायक है । किन्तु सहायक होने पर भी बुध मुख्यमन्त्री बनने का योग नहीं दे रहे हैं ।

वर्तमान राजयोग मुख्यतः षष्ट्यंश वर्ग के कारण है जिसमें मार्च २०१६ से दो दशकों की शुक्र महादशा आरम्भ है । षष्ट्यंश वर्ग लग्न कुण्डली से भी ४१% अधिक प्रबल होता है परन्तु जन्मकाल शुद्ध चाहिये । षष्ट्यंश में शुक्र और राहु का लग्नवर्ग एवं नवांश से भाव−वर्गोत्तम योग है जो उच्च के तुल्य बल देता है । षष्ट्यंश में भी शुक्र स्वगृही है किन्तु नवांश की तरह अशुभ है । राहु उच्चस्थ हैं । बुध अष्टमेश और आयेश होकर वहीं अत्यधिक अशुभ हैं । षष्ट्यंश की विशेषता यह है कि राजनीति का दशमभाव पूरी षष्ट्यंश कुण्डली में एकमात्र ऐसा भाव है जिसपर किसी ग्रह की शत्रुदृष्टि नहीं है और दशमेश सूर्य भी पञ्चम में शुभ हैं । कामभाव अशुभ है किन्तु राजनीति का भाव अच्छा है ।

राजनीति में दशम वर्ग का भी महत्व रहता है । इनके दशम वर्ग का दशम भाव अत्यधिक प्रबल और शुभ है — उसमें उच्च के सूर्य हैं और दशमेश मङ्गल भी राजयोगकारी हैं । लग्न में उच्चस्थ बृहस्पति धर्मेश भी हैं और षष्ठेश होकर शत्रुनाशक योग बना रहे हैं । दशम वर्ग में महादशा शनि की है जो अशुभ हैं किन्तु अभी अन्तर्दशा बृहस्पति की है । दशम वर्ग का विंशोपक बल अल्प है जिस कारण उसमें केवल प्रबल ग्रहों का ही प्रभाव पड़ता है । प्रबल बृहस्पति वर्तमान प्रान्तीय चुनाव में सहायक हैं ।

षष्ट्यंश के शुक्र की महादशा मार्च २०१६ में आरम्भ हुई जिसमें मुख्यमन्त्री बनें । उस समय किसी को अनुमान भी नहीं था कि योगी आदित्यनाथ भारत के सबसे बड़े प्रान्त का मुख्यमन्त्री बन सकते हैं । भाजपा में भी बहुत से गुप्त विरोधी थे । समस्त विरोधों को ध्वस्त करने वाला प्रमुख योग है वर्गोत्तम जिसने षष्ट्यंश में स्वगृही शुक्र को अनेक उच्चत्व वाला प्रचण्ड राजयोग दिया । १,३,४,७,९,१०,१२,२७ और ६० वर्गों में शुक्र सप्तम भावस्थ हैं जो भाव−वर्गोत्तम है । राजनीति में सहायक सारे वर्ग इनमें सम्मिलित हैं,जैसे कि दशम,सप्तविंशांश २७ सहित प्रथम,नवांश एवं षष्ट्यंश । २,१६,२०,२४,३०,४० और ४५ वर्गों में भी शुक्र का भाव−वर्गोत्तम लग्न में है जिसका राजनीति पर प्रभाव नगण्य एवं परोक्ष है किन्तु शुक्र के कुल बल की वृद्धि में सहायक है । योगी आदित्यनाथ के प्रचण्ड राजयोग के पीछे मुख्य कारण यही वर्गोत्तम योग है जिसने षष्ट्यंश में शुक्र की महादशा को प्रबल राजयोग दिया जो जुलाई २०३६ तक है — इस दौरान योगी आदित्यनाथ का उत्थान होगा बशर्ते वे जीवित रहें,किन्तु नरेन्द्र मोदी के पश्चात भाजपा की कुण्डली में पार्टी के पतन का योग है ।

योगी जी के षष्ट्यंश में अन्तर्दशा नीचस्थ चन्द्रमा की है जिसपर महादशाकारक शुक्र की पूर्ण शत्रुदृष्टि है । अतः शुक्र में जो कुछ भी अशुभत्व है वह मुख्यतः चन्द्रमा की अन्तर्दशा में ही मिलेगा — अप्रैल २०२१ से फरवरी २०२४ तक । वर्तमान में यही प्रमुख समस्या है । शुक्र और चन्द्रमा दोनों की शान्ति योगी जी को करनी चाहिये । परन्तु समस्या यह है चालू पद्धति वाले ज्योतिषी से वे राय लेंगे जो गलत ग्रहों की शान्ति करायेंगे,न तो सूर्यसिद्धान्त का उपयोग किया जायगा और न अष्टोत्तरी,वर्गोत्तम एवं षष्ट्यंश का जैसा कि पराशरी होराशास्त्र के अनुसार करना चाहिये ।

जन्मकाल में एक मिनट के अन्तर से षष्ट्यंश में अष्टोत्तरी की दशा में आठ मास का अन्तर आ रहा है । योगी आदित्यनाथ के जीवन की मुख्य घटनायें और लक्षणों का उपरोक्त जन्मकाल से मेल बैठता है,परन्तु सूक्ष्म जाँच की आवश्यकता है ताकि सेकण्ड तक की शुद्धि जन्मकाल में हो । तभी दशाओं की गणना अधिक शुद्धि से हो सकेगी । फिलहाल षष्ट्यंश दशाओं के काल में कुछ मासों की त्रुटि सम्भव है । जन्मकाल में दो मिनट की त्रुटि से षष्ट्यंश में एक राशि ही बदल जाती है । इस तरह के सूक्ष्म जाँच को “लग्नशुद्धि” कहते हैं । लग्नशुद्धि की पारम्परिक पद्धति में गर्भाधान-काल की आवश्यकता पड़ती है जिसका ज्ञान आजकल किसी को नहीं रहता । अतः जीवन की प्रमुख घटनाओं की जाँच द्वारा ही लग्नशुद्धि करनी चाहिये ।

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