Vimshottari Year Length

English

Traditional practice is to use 360-day year for Vimshottari Dashaa. But there are nine types of Kaalamaana (measure of Time) and hence nine types of YEAR in Vedic Jyotisha : Braahma, Maanava, Divya, Paitra, Saura, Saavana, Chaandra, Naakshatra and Gaurava.

Braahma measure has one Kalpa of 432 crore human years equal to one Braahma day (excluding night).

Maanava = one manvantara

Divya year = 360 human years

Paitra = one luni-solar month equal to one day-night of Pitaras

Saura year= Mesha samkraanti to next mesha samkranti ; one saure Dina = one degree of true nirayana Sun.

Saavana = Sunrise to next sunrise is one saavana day, in long term its year is equal to Saura year

Chaandra = Synodical luni-solar month is Moon's revolution with respect to the Sun. It is called Chaandra Maasa.

Naakshatra = Moon's revolution with respect to the Fixed Sky is one naakshatra month.

Gaurava = 361days for one raashi bhoga of Jupiter is one samvatsara of Jupiter.

Tropical year is absent in this traditional list. So is 360-days solar or saavana year. There is no type of year with 360 solar or saavana days. Hence, it is nonsense to use a 360-day solar year for vimshottari. Thus idea was propagated by N C Lahiri who published a 360-saavana day calendar.

Among the nine types, two types have 360 days in a year : Saura and Chaandra years. Saura year has 360 degrees, each degree is one Saura day which does not start or end with Sunrise. Chaandra day is Tithi. There are 360 tithis in a Chaandra Year. Extra Month (Adhika Maasa or intercalary month) is not a part of the Chandra Varsha and is therefore called "Adhika" or inter-calary (intermediate to two calendrical months). Naakshatra year of Moon does not have 360 divisions. Hence, Vimshottari Year of 360 days must be either of 360 degrees of Sun, or 360 tithis.

Since Vimshottari is made from Moon, it is more logical to use Chaandra Varsha of 360 tithis for Vimshottari. 360 tithis is equal to 354.367 saavana days and is therefore solar year is 3.07% more than Chaandra Varsha. Thus, 120 Chaandra Varshas of Vimshottari are equal to 116.4 years. Chhaandogya Upanishada also says that the full extent of human life is 116 years, which is rounded off to one century approximately in shlokas and mantras.

Comparison of various types of year in Vimshottari has also convinced me that 360 chaanda dina (= tithi) is the Vimshottari year. Thus, if we use solar year, there will be 3% error which is equal to one year in every 33 years of age. Drik Siddhanta does not remove these doubts because of +/- 1.5 degrees difference in lunar longitude which creates almost same amount of error as created by wrong year type. Hence, experimentation of Drik versus SSS as well as Solar versus Lunar year both must be carried out simultaneously to remove the doubts. Prejudiced mindset will prevent anyone to arrive at any correct conclusion. Prejudice means undue belief in self-righteousness WITHOUT EXPERIMENTATION.

For further reading, see VIMSHOTTARI

Hindi ( हिंदी )

भारतीय ज्योतिष के शास्त्रीय ग्रंथों, जैसे कि सूर्यसिद्धांत, में नौ प्रकार के कालमानों का उल्लेख है :
ब्राह्म , मानव (मन्वन्तरों पर आधारित), दिव्य, पैत्र्य , सौर , सावन, चान्द्र , नाक्षत्र, गौरव (बार्ह्स्पत्य )।

विंशोत्तरी दशा प्रणाली में इनमे से केवल चार की सम्भावना नंती है : सौर , सावन, चान्द्र , नाक्षत्र । सावन का अर्थ है सूर्योदय से लेकर तक अगले सूर्योदय तक के काल पर आधारित दिन । यह सूर्य पर आधारित है, अतः केवल सौर वर्ष से ही इसका सम्बन्ध हो सकता है, क्योंकि पृथक रूप से 'सावन' नाम का कोई वर्षमान नहीं होता । ३६० सावन दिनों का कोई वर्ष नहीं हो सकता, लेकिन स्वर्गीय निर्मल चन्द्र लाहिड़ी ने अपने ग्रन्थ Advance Ephemeris में इसी बेतुके वर्ष की सारिणी 'सावन कैलेंडर' शीर्षक से दी है जो बिल्कुल तर्कहीन और अशास्त्रीय विचार है ।

सायन वर्ष का प्रयोग ईसाई कैलेंडर में होता है , भारतीय शास्त्रों में इसका प्रयोग नहीं है । स्वर्गीय निर्मल चन्द्र लाहिड़ी ने यह भूल इस आधार पर की क्योंकि ३६० दिनों के विंशोत्तरी वर्ष की परम्परा चली आ रही थी । किन्तु लाहिड़ी जी जैसे वैज्ञानिकों को ईसाई वर्ष का अभ्यास था, उनका शेष ज्योतिषीय ज्ञान किताबी था । अतः चान्द्रदिन उनकी कल्पना से बाहर की चीज थी ।

नौ प्रकार के हिन्दू कालमानों में से केवल दो कालमान ही ऐसे हैं जिनमे ३६०-दिवसीय वर्ष का प्रावधान है : सौर और चांद्र । सौर वर्ष में दो प्रकार की दिन-व्यवस्था है जो दीर्घकाल में समाक वर्षमान के हैं किन्तु जिनके दिनमान सामान नहीं होते :

(१) लगभग सवा ३६५ सावन दिनों के वर्षमान को ३६० अंशों में भी बांटा जाता है जिनमे प्रत्येक अंश को सौर दिन कहा जाता है , और

(२) ३६० तिथिओं के चान्द्र वर्षमान की जिसमे अधिकमास को धार्मिक वर्ष से बाहर रखा जाता है जिस कारण उसे "अधिक" या "मल" मास कहा जाता है ।

दर्जनों प्रकार की दशा प्रणालियों का ज्योतिषशास्त्र के प्राचीन ग्रंथों में उल्लेख मिलता है, जिनमे कुछ चन्द्रमा पर आधारित हैं, जैसे कि विंशोत्तरी, अष्टोत्तरी, कालचक्र, आदि, जिनमे ३६० तिथियों के चान्द्रवर्ष का प्रयोग होना चाहिए, और अन्य दशाओं में निरयण सौर वर्ष का प्रयोग होना चाहिए । ईसाई कैलेंडर के सायन वर्ष की हिन्दू शास्त्रों में कहीं भी मान्यता नहीं है ।

३६० तिथियों का चान्द्रवर्ष ३५४.३६७ सावन दिनों के बराबर होता है । अतः चान्द्रवर्ष के स्थान पर यदि ३६५ दिनों से कुछ अधिक मान के सौर वर्ष का प्रयोग किया जाय तो ३.०७ % का अन्तर होगा, जिसका अर्थ यह है कि १२० चान्द्रवर्ष ११६.४ सौर वर्षों के तुल्य होगा । यही कारण है कि छान्दोग्य उपनिषद् में ११६ वर्ष के पूर्णायु की बात कही गयी है ।

यदि चान्द्रवर्ष के स्थान पर सौरवर्ष का प्रयोग विंशोत्तरी दशा में किया जाय तो लगभग ३३ वर्षों में एक वर्ष और ६६ वर्षों में दो वर्षों की त्रुटि होगी ।

यदि सूर्यसिद्धान्त के बदले भौतिक विज्ञान का प्रयोग ज्योतिष में किया जाय तो चन्द्रमा की स्थिति में लगभग डेढ़ अंशों का अंतर पड़ जाएगा , जिस कारण दशा-साधन में दो वर्षों तक की अतिरिक्त त्रुटि हो जाएगी ।

यह त्रुटि अत्यधिक है , क्योंकि फल केवल महादशा या अन्तर्दशा पर निर्भर नहीं करता, बल्कि विंशोत्तरी के पाँचों स्तर के फलों का सम्मिलिक फल ही घटना का निर्धारण करता है । पाँच में से तीन या चार दशाएं यदि गलत हों तो फलादेश की भविष्यवाणी संभव नहीं है ।

VJ

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