मेदिनी ज्योतिष की प्राचीन पद्धति का एक उदाहरण प्रस्तुत है : 18 सितम्बर 2016 को कश्मीर के ऊरी में स्थित भारतीय सेना के कैंप पर पाकिस्तान के आतंकवादियों का आक्रमण | मेदिनी का अर्थ है पृथ्वी |
मेदिनी ज्योतिष के सामान्य नियमों का उल्लेख इसी वेबसाइट के अन्य लेखों में है, उनकी पुनरावृति प्रस्तुत लेख में प्रायः नहीं की जायेगी |
मेदिनी ज्योतिष में पृथ्वीचक्र, देशचक्र, प्रदेशचक्र, मण्डलचक्र (जिला), नगर या ग्राम का चक्र और गृह या क्षेत्र (खेत आदि) का चक्र - कुल छ स्तर (level) के मेदिनी चक्र होते हैं | इनका उल्लेख प्राचीन यामल-तन्त्र के ग्रन्थों में है | हिन्दू राज्यों के पतन के साथ ही मेदिनी ज्योतिष की आर्ष पद्धति का लोप हो गया, क्योंकि उन राजज्योतिषियों के पास ही यह गोपनीय विद्या रहती थी जो निस्वार्थ भाव से देशहित के लिए विद्या का प्रयोग करते थे | सूर्यसिद्धान्तीय गणित और पाराशरी फलित का प्रयोग करने पर ही सही फल प्राप्त होगा | मुफ्त Kundalee सॉफ्टवेयर (इसी वेबसाइट में उपलब्ध) में "मेदिनी" नाम का फोल्डर है जिसमें विदिशा से देशचक्र बनने की विधि मिल जायेगी |
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ईस्वी 2016 का देशचक्र विदिशा से बनने पर जो वर्ष-कुण्डली बनती है वह निम्न चित्र में संलग्न है |
KUNDALEE सॉफ्टवेयर द्वारा देशचक्र कैसे बनाएं, यह जानने के लिए इस लिंक को क्लिक करें :-
इनपुट
देशचक्र कई वर्षप्रवेश कुण्डली (VPC-1, अर्थात वर्ष-प्रवेश-चक्र का प्रथम स्तर, देखें पराशर होराशास्त्र के सुदर्शन चक्र अध्याय में वर्ष चक्र) बनाने के लिए Kundalee सॉफ्टवेयर में उक्त चित्र के अनुसार Input भरें : वर्षप्रवेश कुण्डली (VPC-1) के लिए वर्ष (इस उदाहरण में ईस्वी 2016) भरें, मास या दिन और समय में कोई छेड़छाड़ न करें | नीचे के बटन ज्यों का त्यों रहने दें |
सॉफ्टवेयर में "SHOW" बटन दबाने पर जो भावचलित कुण्डली खुलेगी (जिसके साथ मानचित्र पर देशचक्र भी संलग्न है) वह निम्न लिंक को क्लिक करने पर दिखेगी :-
देशचक्र
उस कुण्डली का सर्वतोभद्रचक्र देखने के लिए निम्न लिंक को क्लिक करें :-
सर्वतोभद्रचक्र
उपरोक्त चित्र देखने के स्थान पर यदि Kundalee सॉफ्टवेयर का प्रयोग करें तो बेहतर रहेगा, क्योंकि देशचक्र पर माउस टहलाने से ही उसका प्रयोग समझ में आयेगा |
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विश्लेषण
सबसे पहले वर्षप्रवेश भावचलित कुण्डली (VPC-1) में सबसे अशुभ ग्रह खोजें | कुण्डली में तीन भाव ऐसे होते हैं जिनमें स्थित ग्रह सर्वाधिक अशुभ फल देते हैं : छठा, आठवाँ और बारहवाँ (6H, 8H तथा 12H)|
इन भावों में सूर्य, बुध और चन्द्रमा बैठे हैं |
तत्पश्चात इसकी जाँच करें कि इन तीनों में कौन अधिक अशुभ हैं | सूर्य दशमेश हैं | नैसर्गिक पापग्रह यदि केन्द्रेश हो तो शुभग्रह बन जाते हैं | अतः सूर्य शुभग्रह हैं | परन्तु सूर्य शत्रुभाव (6H) में स्थित हैं, अतः सूर्य की राशि और उसमें बैठ ग्रहों - बृहस्पति तथा राहू - के लिए यह अशुभ है |
चन्द्रमा नवमेश हैं, अतः वे भी शुभ हैं | किन्तु मृत्युभाव (8H) में रहने के कारण चन्द्रमा की राशि अशुभ है |
बुध अष्टमेश तथा एकादशेश हैं, जो इसे अत्यधिक अशुभ बनाता है | अष्टमेश यदि छठे भाव में हो तो शत्रुभाव के लिए विपरीत राजयोग (VRY) बनता है | किन्तु इस सन्दर्भ में दो बातें उल्लेखनीय हैं | छठे भाव में शुभ और अशुभ दोनों का मिश्रण होता है, यह उपचय (लाभ) का भाव है, विशेषतया कुल सम्पत्ति का, अतः सम्पत्ति सम्बन्धी मामलों में यह विपरीत राजयोग कार्य नहीं करेगा | परन्तु छठा भाव शत्रु एवं रोग का भी भाव है जो अशुभ है, अतः अष्टमेश यदि छठे भाव में हो तो शत्रु एवं रोग सम्बन्धी विषयों में यह विपरीत राजयोग कार्य करेगा |अतः बुध में विपरीत राजयोग जनित शुभत्व होना चाहिए | परन्तु बुध एकादशेश भी है जो सर्वाधिक अशुभ होता है | अतः बुध का अशुभत्व ही प्रबल है |
इसके अलावा बुध अपने शत्रु मंगल की राशि में स्थित है | मंगल लग्नेश एवं षष्ठेश हैं, अतः शुभ तथा अशुभ दोनों हैं | फलस्वरूप मंगल अपने मित्रों को शुभ और शत्रुओं को अशुभ फल देंगे | अतिशत्रु शनि के साथ युक्त होने के कारण मंगल की अशुभता अधिक प्रबल है | मंगल स्वगृही भी हैं, अतः मंगल का शुभ और अशुभ प्रभाव बलवान होगा | बुध चूँकि मंगल का शत्रु है, अतः मंगल का प्रबल अशुभ प्रभाव बुध पर है | कुल मिलाकर सबसे अशुभ ग्रह बुध हैं |
सर्वतोभद्रचक्र में बुध का वेध किन किन अक्षरों पर हैं इसकी जाँच करें | प्रस्तुत चक्र में बुद्ध का सम्मुख वेध प्रभावी है (किन्तु पञ्चतारा ग्रहों में तीनों वेध सदैव प्रभावी रहते हैं, जिसका उल्लेख नरपतिजयचर्या में नहीं है, यद्यपि नरपतिजयचर्या में जिसे प्रभावी बताया गया है उसका प्रभाव अधिक रहता है, अतः प्रस्तुत प्रसंग में सम्मुख वेध अधिक प्रभावी है)|
बुध का सम्मुख वेध निम्न अक्षरों पर है :- उ, अ, व, क, ह, ड, ऊ | उ तथा ऊ को सजातीय माना जाता है | अतः उ अथवा ऊ से आरम्भ होने वाले स्थानों पर प्रसंगोक्त वर्ष के दौरान देशचक्र में सर्वाधिक अशुभ प्रभाव पडेगा |
उ और ऊ पर सूर्य, बृहस्पति तथा मंगल का भी वेध है | सूर्य और मंगल बुध के सम्बन्धी हैं तथा बृहस्पति सूर्य की राशि में हैं | अतः ये चार ग्रह उ अथवा ऊ को विद्ध कर रहे हैं | समूचे सर्वतोभद्र चक्र में किसी अन्य अक्षर पर इतने ग्रहों का वेध नहीं है | अतः इस वर्ष सर्वाधिक अशुभ प्रभाव उ अथवा ऊ अक्षर से आरम्भ होने वाले स्थल पर पडेगा |
सूर्य में शुभ और अशुभ दोनों गुण हैं, किन्तु शत्रु होने के कारण बुध पर केवल अशुभ प्रभाव ही पडेगा | सूर्य की राशि में स्थित बृहस्पति सूर्य से प्रभावित होने के कारण बुध के लिए अशुभ हैं ही, स्वयं भी बुध के अतिशत्रु हैं | राहु भी बुध के शत्रु एवं सूर्य के अतिशत्रु हैं | अतः अशुभ स्थल का बुध से प्रभावित होना अनिवार्य है |
चक्र के तीन भाग बुध से प्रभावित हैं - बुध की दोनों राशियाँ तथा वह स्थान जहाँ बुध बैठे हैं |
बुध की राशि मिथुन में अतिमित्र भाव से चन्द्रमा बैठे हैं, अतः अष्टम भावस्थ होने के बावजूद वे बुध से प्रभावित स्थल हेतु केवल शुभ हैं |
बुध जहाँ बैठे हैं वहाँ उच्च के सूर्य समभाव से बैठे हैं जो दशमेश होने के कारण शुभ हैं | षष्ठ भाव पर अधिक बलवान होने के कारण सूर्य का प्रभाव अधिक है |
परन्तु कन्या राशि से सूर्य, बृहस्पति और राहु तीनों का केवल शत्रु सम्बन्ध ही है | कन्या राशि के आरम्भिक पौने दो अंश में दशम भाव है तथा शेष सवा अठाईस अंश में एकादश भाव है | दोनों भागों पर बुध एवं सूर्य का प्रभाव है, किन्तु दशम भाव वाली कन्या राशि पर बृहस्पति एवं राहू का अतिरिक्त प्रभाव भी है, और ये दोनों प्रभाव शत्रुवत हैं | फलस्वरूप देशचक्र का सर्वाधिक अशुब भाग है कन्या राशि के आरम्भ का वह भाग जो दशम भाव में है : कन्या राशि के आरम्भ का 1 अंश 45 कला 56 विकला (भवचलित चक्र में "चक्र" नाम के बटन को दबाने पर को पृष्ठ खुलेगा उसमें भावों और भावसंधियों के अंश दिए हुए हैं)|
पूरा वर्ष 365 दिन और छ घण्टे से कुछ अधिक होता है | अतः 1 अंश 45 कला 56 विकला का मान वर्षचक्र में 1 दिन 19 घण्टों के तुल्य होगा | इसका अर्थ यह हुआ कि सूर्य का जब कन्या राशि में प्रवेश होगा तब से लेकर उसके 1 दिन 19 घण्टे बाद तक का काल पोरे वर्ष का सर्वाधिक अशुभ काल होगा जो उ अथवा ऊ से आरम्भ होने वाले नाम वाले स्थल के लिया सबसे बुरा होगा | यह समय है 17 सितम्बर 2016 को 9:28:06 बजे (IST) से लेकर 19 सितम्बर 4:27:38 बजे तक | इसी काल में उक्त घटना होनी चाहिए |
सूर्य का कन्या राशि में प्रवेश का काल जानने के लिए वर्ष कुण्डली के मानचित्र वाले देशचक्र पर माउस को कन्या राशि के उक्त भाग पर तःलायें, नीचे दाहेनी ओर "माउस काल" दिखेगा |
दूसरा तरीका है इनपुट पृष्ठ के निचले भाव में "Enter 1 - 5 for five levels…." की बाईं ओर वाले टेक्स्ट बॉक्स में 1 को हटाकर 2 लिखें, और फिर उसके सबसे नीचे 1 को हटाकर 6 लिखें ("Enter solar month number"), और फिर "SHOW" बटन दबाएँ, वर्ष के छठे सौरमास की कुण्डली (VPC-2 या वर्षप्रवेश का दूसरा स्तर को मासप्रवेश कहलाता है)| मानचित्र में कन्याप्रवेश का काल मिल जाएगा |
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देश में उ अथवा ऊ से आरम्भ होने वाले अनेक स्थान हैं | उनमें से किस स्थान पर उक्त अशुभ घटना घटेगी इसका निर्णय सर्वाधिक कठिन कार्य है | इसके दो तरीके हैं - पहला तरीका है देश के उन सभी स्थानों पर अशुभ ग्रहों की दृष्टि और युति का सम्मिलित फल देखें जिनके नाम का पहला अक्षर उ अथवा ऊ है | दूसरा तरीका है जप-तप प्राणायाम आदि द्वारा आत्मशुद्धि सहित ज्योतिषशास्त्र का निस्वार्थ भाव से सम्यक अध्ययन, जो अल्प परिश्रम द्वारा ही सत्य दर्शन की क्षमता देता है | दूसरा तरीका श्रेष्ठ है क्योंकि यह जीवन और मृत्यु के हर क्षेत्र में काम देगा | उसका उदाहरण प्रस्तुत है :—
बुध शत्रु भाव में स्थित हैं तथा बुध की राशियाँ मुख्यतः मृत्यु एवं आय भावों में हैं | अतः शत्रु द्वारा मृत्यु एवं आर्थिक क्षति का फल बनता है | बुध द्वारा सम्मुख वेध जिन अक्षरों पर है उनमें केवल "कश्मीर" ही देशचक्र में देश के शत्रु की सीमा से संलग्न है | अतः 17 सितम्बर 2016 को 9:28:06 बजे (IST) से लेकर 19 सितम्बर 4:27:38 बजे तक पाकिस्तान द्वारा कश्मीर के "ऊ" से आरम्भ होने वाले स्थल पर मृत्यु एवं आर्थिक हानि पँहुचाने वाली अशुभ घटना का फल बनता है |
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जो वैकल्पिक विधि का प्रयोग करना चाहें उनके लिए उदाहरण प्रस्तुत है |
देशचक्र के मानचित्र में ऊरी जहाँ पर है वहाँ पर माउस को रखें और दृष्टियों एवं युतियों का अध्ययन करें :-
सूर्य 25 स्वगृही दृष्टि
चन्द्र 7 अतिमित्र दृष्टि
मंगल 20 सम दृष्टि
बुध 36 सम दृष्टि
बृहस्पति युति (60 समदृष्टि के तुल्य)
शुक्र 12 सम दृष्टि
शनि 45 अतिशत्रु दृष्टि
राहू युति (60 समदृष्टि के तुल्य)
केतु 13 अतिमित्र दृष्टि
बुध से विद्ध स्थल हेतु सूर्य एवं राहु शत्रु हैं, मंगल एवं बृहस्पति अतिशत्रु हैं, शनि और केतु सम हैं, और चन्द्रमा अतिमित्र हैं | अतः उपरोक्त दृष्टियों में इन दृष्टियों का भी योग करें, तब कुल फल यही मिलेगा कि अशुभ दृष्टियों का अत्यधिक प्राबल्य है | इसी प्रकार से ऊ नाम वाले अन्य संभावित स्थानों की भी परस्पर तुलना करें और पता लगाएं कि सर्वाधिक अशुभ प्रभाव किस स्थान पर है |
देशचक्र के सभी पाँच काल-स्तरों (मासप्रवेश और उससे निछले अन्य स्तर) की भी इसी पद्धति द्वारा जाँच करने पर घटना का ठीक-ठेल काल भी ज्ञात किया जा सकता है | समय लगेगा, किन्तु ज्योतिष का ज्ञान बढेगा | मेदिनी ज्योतिष द्वारा ही जातक में भी योग्यता अर्जित की जा सकती है | मेदिनी ज्योतिष देशहित का माध्यम है | जिन्हें देशहित से सरोकार नहीं वे ज्योतिष सीखने के अधिकारी नहीं हैं |
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कलियुग के सभी लेखकों से दूर रहें, अन्तिम वैदिक मन्त्रदृष्टा ऋषि पराशर जी का होराशास्त्र (BPHS : बृहत्-पराशर होरा शास्त्र) पढ़ें, और कलियुग के ग्रन्थों में केवल वहीं अंश मानें जो पराशर जी के मत के अनुकूल प्रतीत हों | BPHS के कई संस्करण हैं, जिनमें सबसे विश्वसनीय है प. देवचन्द्र झा का BPHS (चौखम्बा), और सबसे बुरा है सीताराम झा का BPHS जिसका अंग्रेजी में अनुवाद हुआ (सीताराम झा ने पांडुलिपि में ही बहुत से अंश हटा दिए और बहुत से अंश जोड़ दिए, और इस बात की खुलेआम डींग भी मारी)| संध्यावन्दन प्राणायाम सात्विक-भोजन आदि करते रहेंगे तभी लाभ होगा |