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चांदी मूल्य का ग्राफ : ज्योतिषीय विश्लेषण

राष्ट्रीय ज्योतिष के मौलिक नियम

राष्ट्रीय ज्योतिष की पद्धतियों को प्राचीन राज्यों के राज-ज्योतिषी गुप्त रखते थे, ताकि शत्रु राज्य उन विधियों का लाभ न उठा सके। कालान्तर में लोग इन पद्धतियों को भूल गए, और मध्ययुग में कपोल-कल्पित नयी विधियों की कल्पना कर ली गयी, जिनमे से अधिकाँश का ज्योतिष की मानक विधियों से कोई तालमेल नहीं बैठता। ज्योतिष की मानक विधियों से तात्पर्य है राष्ट्रीय कुण्डली बनाकर होराशास्त्र की माकन विधियों द्वारा उनका फलादेश करना। ऐसी मानक विधियां पहले अस्तित्व में थीं, इसके अनेक प्रमाण हैं, जैसे की पृथ्वी या देश या प्रदेश के नक़्शे पर कूर्म चक्र जैसे चक्र बनाने की प्रथा। ऐतिहासिक विस्तार में न जाकर यहाँ उन विधियों का उदाहरण सहित खुलासा किया जा रहा है जिनका यदि सही तरीके से प्रयोग किया जाए तो राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय घटनाओं की सटीक भविष्यवाणी और ज्योतिषीय व्याख्या संभव है।

सबसे पहले यह स्पष्ट रूप से समझ लेना चाहिए कि 'राष्ट्र' की आधुनिक पाश्चात्य अवधारणा मेदिनी ज्योतिष पर लागू नहीं करनी चाहिए। तलवार के बल पर बनी भूगोल राजनैतिक इकाई को 'राज्य' या स्टेट कहते हैं, राष्ट्र नहीं। राष्ट्र तो लोगों को लोगों से जोड़ने वाला वाली एक मनोवैज्ञानिक शक्ति है जिसका आधार सांस्कृतिक होता है, राजनीति इसका एक गौण या क्षणिक हिस्सा हो सकता है और अक्सर राजनीति राष्ट्र-निर्माण में अनुपस्थित भी रहती है। "राष्ट्र का निर्माण ईंट-पत्थर या बम-बारूद से नहीं, मानव-मूल्यों द्वारा होता है, जिनके स्खलित होने से राष्ट्र की वह शक्ति क्षीण होती जो मानव को मानव से जोड़ कर राष्ट्र का रूप गढ़ती। भारत नाम के राष्ट्र की वह शक्ति है भारती, जो गुरु की वाणी बनकर निकले तो इडा, और शिष्य की मति का रूप धरे तो सरस्वती कहलाती (- स्वर्गीय डॉ लक्षमण झा)। जबतक राष्ट्र में वह शक्ति विद्यमान थी, एक अकेला शिक्षक (चाणक्य) अपनी चुटिया खोलकर घूम गया तो राष्ट्र के सारे छात्र उसके पीछे हो लिए, और देशी-विदेशी राष्ट्र-विरोधी तत्वों से राष्ट्र की रक्षा संभव हो सकी। लेकिन राष्ट्र की वही शक्ति जब क्षीण हुई तो मुट्ठी भर जमीनी और समुद्री दस्युओं ने इस प्राचीन और विशाल देश तो रौंद डाला। महाभारत में व्यास जी ने भारत की परिभाषा दी है : भारत (भूगोल का एक टुकडा भर नहीं बल्कि) एक कल्पवृक्ष है जिसके फल और पुष्प हैं धर्म और मोक्ष। अन्य देशों में केवल अर्थ और काम की पूर्ति संभव है, वह भी धर्म-विरूद्ध। चारों पुरुषार्थों की पूर्ति द्वारा जहां प्रजा का भरण हो, उसे भारत कहते हैं (यहाँ धर्म का आधुनिक संकीर्ण सांप्रदायिक अर्थ नहीं लेना चाहिए ; धर्म उन नैतिक मूल्यों के सनातन समुच्चय को कहते है जिनपर सम्पूर्ण संसार टिका है, और जिनमे मानव द्वारा मनमाना परिवर्तन करने पर व्यक्ति और समाज का नाश होता है)।

इस सनातन भारत का एक दीर्घकालीन भौगोलिक स्वरूप भी रहा है, जिसका शाश्वत केंद्र है विदिशा जो अब मध्य प्रदेश में एक जिला केंद्र है। भारत की समस्त राष्ट्रीय कुण्डलियाँ विदिशा से ही बननी चाहिए, जिन्हें प्राचीन शब्दावली में देश-चक्र कहना उचित है। (विस्तार के लिए देखें : HERE )

चांदी मूल्य का ग्राफ : 29 नव, 2012 मुंबई

Silver Price Astrological Analysis : 29 Nov, 2012, MCX

निम्न ग्राफ मुंबई के मल्टी कमोडिटी एक्सचेंज (MCX) के पूरे एक दिन 29 नव 2012 के चांदी के मूल्य का उतार-चढ़ाव दर्शाता है। निम्नतम मूल्य साढ़े बारह बजे दोपहर से दो मिनट पहले था, और उच्चतम बिंदु रात 20:16 बजे। मुंबई स्टॉक एक्सचेंज के अक्षांश 18:55:48 N और रेखांश 72:50:00 E पर सूर्यसिद्धान्तीय गणित द्वारा लग्न-कुण्डली (D -1) और होरा-कुण्डली (D -2) निम्नतम तथा उच्चतम कालों के लिए नीचे दिए गए हैं, यद्यपि अन्य वर्गों का भी कुछ प्रभाव पड़ता है, विशेषतः नवमांश वर्ग का। लेकिन एक नवमांश लग्न का प्रभाव लगभग 13 मिनट तक रहता है जबकि होरा का एक घंटे और लग्न कुण्डली के लग्न का दो घंटों तक । लग्न कुण्डली के भावचलित में ग्रहों के भाव बदलने से फल बदलते रहते हैं, 13.5 घंटों में कुल 59 कुण्डलियाँ बनती हैं। लेकिन अन्य वर्गों में भावचलित नहीं होता, अतः अपेक्षाकृत कम कुण्डलियाँ बनती हैं, जैसे कि एक दिन में 108 (13.5 घंटों में 61) नवमांश कुण्डलियाँ बनती हैं।

ग्रह-फलकाल-निर्धारण का प्राचीन अलिखित नियम :

"पलाशी का युद्ध" आलेख में फलकाल की सोदाहरण चर्चा की गयी है। पहले वह लेख गौर से पढ़ लें, फिर चाँदी के मूल्य पर वर्तमान आलेख पर ग्रह-फलकाल के उक्त नियम को लागू करे, अद्भुत परिणाम प्राप्त होगा। ग्रह-फलकाल-नियम का सारांश निम्नोक्त है :

जिस षोडश-वर्ग का ग्रह-फलकाल जानना है उस वर्ग के कुल काल को 360 अंश मान लें और कुण्डली में विभिन्न ग्रहों के स्थान के अनुसार उनके फलकाल को निर्धारित करें। उदाहरणार्थ, नवांश वर्ग का कुल काल औसतन 13 मिनट से कुछ अधिक का होता है। यदि नवांश वर्ग में मंगल 180 अंश (तुलारम्भ) पर हो तो 13 मिनट के आधे पर मंगल अपना अच्छा या बुरा फल उस कुण्डली के अनुसार देगा।

एक उपनियम यह है कि ग्रह की राशि को त्याग दें और अंशादि के अनुसार फलकाल तय करें। जातकशास्त्र में विंशोत्तरी का मुख्यफल राशि त्यागकर केवल अंशादि के अनुसार होता है, लेकिन मेदिनी ज्योतिष में ऐसा नहीं है। अतः दोनों नियम अपने-अपने क्षेत्र में ठीक है।

दूसरा नियम यह है की यदि दो लगातार ग्रह अशुभ है तो दोनों के बीच में ग्राफ सबसे नीचे गिरेगा। और दोनों शुभ हों तो बीच में उठेगा। बीच का वह बिंदु दोनों ग्रहों से कितनी दूरी पर है यह ग्रहों के मुख्य बल पर निर्भर करता है। मुख्य बल उच्चादि बल है, जो तुल्य हो तभी षडबल का प्रयोग करें, अन्यथा नहीं।

चाँदी के लिए चन्द्रमा और स्वर्ण के लिए बृहस्पति (और उनके सम्बन्धियों) का विशेष महत्व है।

पाठकों से आग्रह है की ग्राफ की व्याख्या स्वयं करने का कष्ट करें। जो परिश्रम करेंगे उन्हें अधिक लाभ होगा।

ग्राफ ( GRAPH )

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ग्राफ का निम्नतम बिंदु : लग्न एवं होरा कुण्डलियों की व्याख्या( D-1 and D-2 Charts : Lowest Point )

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चांदी के मूल्य के निम्नतम बिंदु का स्पष्टीकरण :

D-1 की व्याख्या :

उपरोक्त लग्न कुण्डली में लग्नेश शनि उच्च के हैं और सम-संबंधी स्वगृही शुक्र एवं सम-संबंधी बुध के साथ भाग्य गृह में हैं। बड़ा शुभ है, फिर चांदी का भाव क्यों गिरा? शनि के द्वादशेश या बुध के अष्टमेश होने से यह संभव नहीं है। शनि-शुक्र-बुध का कुल फल अत्यंत शुभ है।

लेकिन चांदी के कारक ग्रह चन्द्रमा पर इन तीनों की 67% से 77% अति-शत्रु दृष्टि है, और स्वर्ण एवं धन के कारक बृहस्पति पर इन तीनों की लगभग उतनी ही शत्रु दृष्टि है। कोई गृह शुभ भी हो तो सभी बारह भावों पर शुभ प्रभाव नहीं डालता, उन भावों पर वैर या मैत्री के अनुसार प्रभाव डालता है।

दूसरा कारण है धनेश एवं आयेश बृहस्पति का अति-शत्रुगृही होना, और अतिशत्रु भावेश के भावेश-दृष्टि सम्बन्ध के नियंत्रण में होना, तथा वक्री होना जो शुभ या अशुभ फल की वृद्धि करता है।

तीसरा कारण है नीच केतु का अति-शत्रुभाव से चन्द्रमा और बृहस्पति के साथ बैठना।

चौथा कारण है चन्द्रमा की किसी भी गृह से मैत्री का अभाव : चन्द्रमा के साथ अतिशत्रु केतु और सम बृहस्पति हैं जिनका चन्द्रमा शत्रु हैं, तथा चन्द्रमा पर भावेश एवं भावेश के युति-सम्बन्धियों की शत्रु दृष्टि है। सूर्य सम हैं तो चन्द्रमा के अतिशत्रू राहू के साथ हैं। केवल मंगल हैं जो चन्द्रमा के शत्रु नहीं हैं, लेकिन मंगल का चन्द्रमा पर प्रभाव नगण्य है।

अतः कुल मिलाकर चांदी के लिए D-1 अशुभ है। लेकिन उस समय के धर्म और लग्न भाव शुभ थे, जिनका चांदी के मूल्य से कोई सम्बन्ध नहीं था। चन्द्रमा, बृहस्पति, धनेश तथा आयेश अशुभ थे।

D-2 की व्याख्या :

केवल सूर्य-होरा या चन्द्र-होरा में गृह के रहने से धन-संपत्ति की भविष्यवाणी की जाती है, जो गलत है। सूर्य और चन्द्र होरा के देवता हैं और उनका महत्त्व है। लेकिन 12-भावों की होरा कुण्डली के अंतर्गत ही। प्रस्तुत मामले में चन्द्र-होरा में पांच ग्रह हैं : सूर्य, बुध, शुक्र, राहू, केतु, शेष सूर्य-होरा में हैं। चन्द्रमा और बृहस्पति का सूर्य होरा में रहना चांदी का मूल्य नीचे रखने का कार्य करता है।

लेकिन केवल इतने आधार पर पूरा परिदृश्य स्पष्ट नहीं होता। 12-भावों की होरा-कुण्डली में धनेश शनि नीच के हैं और तृतीयेश होने के कारण और भी अशुभ हैं। लग्नेश बृहस्पति अष्टम में उच्चस्थ हैं एवं वहीं स्वगृही चन्द्रमा भी हैं, जो चांदी के लिए बहुत अशुभ है।

D-1 और D-2 का सम्मिलित फल चांदी के लिए बहुत ही अशुभ है।

ग्राफ का उच्चतम बिंदु : लग्न एवं होरा कुण्डलियों की व्याख्या( D-1 and D-2 Charts : Highest Point )

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चांदी के मूल्य के उच्चतम बिंदु का स्पष्टीकरण :

D-1 की व्याख्या :

उसी दिन चांदी का उच्चतम मूल्य का समय था 20:16 बजे रात। उस समय D-1 (लग्न-कुण्डली) में लग्नेश बुध लग्न और चतुर्थ के स्वामी होकर पंचम में योग-कारक हैं। वहीं स्वगृही शुक्र तथा उच्चस्थ शनि हैं और दोनों बुध के लिए सम हैं।

लेकिन धनेश चन्द्रमा द्वादश में मूल-त्रिकोणस्थ थे, जो शुभ नहीं है। वही अति-शत्रुगृही केन्द्रेश-दोषयुक्त बृहस्पति थे, तथा चंद्रमा एवं बृहस्पति के शत्रु विपरीत-राजयोग-कारक केतु थे। इतने अधिक प्रबल शत्रु सम्बन्धियों के कारण चन्द्रमा अशुभ तो थे लेकिन अपेक्षाकृत निर्बल थे। अतः लग्न कुण्डली के निर्बल प्रभाव को प्रबल होरा कुण्डली के प्रभाव ने दबा दिया।

D-2 की व्याख्या :

होरा कुण्डली में लग्नेश बुध दशमेश होकर भाग्यगृह में राजयोगकारक थे, और धनेश एवं भाग्येश शुक्र के साथ मित्र-भाव से थे। चन्द्रमा आय भाव में स्व गृही थे जहां उच्च के बृहस्पति थे जो चन्द्रमा के लिए सम (उदासीन) थे (चन्द्रमा उनके शत्रु थे, जो सोने के लिए ठीक नहीं था, लेकिन बृहस्पति चांदी के लिए अच्छे थे)। अतः होरा कुण्डली चांदी के लिए जबरदस्त रूप से शुभ और प्रबल थी। इसी कारण चांदी का भाव उछला।

- विनय झा

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