सर्वतोभद्रचक्र : सारांश
प्राचीन दिव्य यामल ग्रन्थों पर आधारित नरपतिजयचर्या ग्रन्थ का सारांश
(कुण्डली सॉफ्टवेयर के ‘हेल्प’ से लिया गया है,अजय आर्य के प्रोग्राम द्वारा फॉण्ट परिवर्तित किया है ।)
चक्र का वर्णन
ऊपर ‘पूर्व’,नीचे ‘पश्चिम’,बायें ‘उत्तर’तथा दायें ‘दक्षिण’लिख दें। क्रूरग्रह वक्र हो तो महाक्रूर होता है। शुभग्रह वक्र हो तो महाशुभ होता है।चार प्रकार के नक्षत्र शुभ एवं अशुभ में वर्जित हैं : क्रूरग्रह से विद्ध, भुक्त, आक्रान्त तथा भोग्य।
व्यक्ति के नामाक्षर के स्वर या वर्ण में कोई एक क्रूरग्रह से विद्ध हो तो उद्वेग, दो क्रूरग्रह से विद्ध हो या दो स्वर विद्ध हो तो भय, तीन ग्रहों से या तीन स्वर विद्ध हो तो हानि, चार ग्रह से या चार स्वर विद्ध हो तो रोग एवं पाँच ग्रह से या पाँच स्वर विद्ध हो तो मृत्यु (या मृत्युतुल्य कष्ट) होती है।
क्रूरग्रह से यदि नक्षत्र विद्ध हो तो भ्रम, अक्षर विद्ध हो तो हानि, स्वर विद्ध हो तो रोग, तिथि विद्ध हो तो भय, राशि विद्ध हो तो महाविघ्न, और पाँचों विद्ध हो तो मृत्यु होती है। एक ग्रह वेध करे तो संग्राम में भय, दो वेध करे तो धनहानि, तीन करे तो पराजय, चार करे तो मृत्यु होती है। शुभग्रह का वेध शुभ फल देता है। क्रूरग्रह से युक्त क्रूरग्रह अतिक्रूर होता है। क्रूरग्रह से युक्त शुभग्रह मिश्रित फल देता है। शुभग्रह से युक्त शुभग्रह अतिशुभ होता है।
सूर्य वेध करे तो सन्ताप, मंगल से धनहानि, शनि से रोग या पीड़ा, राहु केतु से विघ्न होता है। चन्द्रवेध का मिश्रित फल, शुक्रवेध से रतिसुख, बुधवेध से प्रज्ञा, तथा गुरुवेध से सारे शुभ फल प्राप्त होते हैं।
यदि नाम के नक्षत्र से वैनाशिक(२३ वें)नक्षत्र को शुभ और अशुभ दोनों ग्रह वेध करते हो तो रोग और धनक्षय होता है। यदि वैनाशिक, सामुदायिक एवं साघंातिक तीनों नक्षत्रों का वेध हो तो मृत्युभय होता है। जो तिथि, राशि, अंश, नक्षत्र क्रूरग्रह से विद्ध हो उसे विवाहादि शुभकर्मों में त्याग दें। ऐसे अवसर पर यात्रा करने पर लौटने की सम्भावना नष्ट होती है तथा रोगारम्भ हो रोग से मुक्ति नहीं मिलती। रोगारम्भ काल में वेधकारक ग्रह क्रूर और वक्री हो तो मृत्यु होती है। रोगारम्भ काल में वेधकारक ग्रह शुभ और वक्री हो तो दीर्घकाल तक रोग रहता है।
शत्रु का जो स्थान क्रूरविद्ध हो वहाँ आक्रमण करने पर विजय मिलती है। दुर्ग के विद्ध स्थल पर धावा करें तो दुर्ग भंग होता है। योद्धा के नक्षत्र से जिस अंग में वेध पड़ता हो उस अंग में घात करने से विजय होती है।
चक्र में प्रत्येक दिशा में तीन-तीन राशियाँ लिखी हुई है। जिस राशि में सूर्य रहे उधर की दिशा अस्त मानी जाती है तथा शेष तीन दिशायें उदित रहती हैं। जैसे वृष मिथुन कर्क में सूर्य रहे तो ज्येष्ठ आषाढ श्रावण सौरमासों में पूर्वदिशा अस्त होती है। ईशान कोण में स्थित स्वरों अ-उ-लृ-ओ को पूर्वदिशा में समझें। अग्निकोण के स्वरों को दक्षिण दिशा में, नैर्ऋत्य के स्वरों को पश्चिम में, तथा वायव्य के स्वरों को उत्तर में समझें। जिस दिशा में त्रैमासिक सूर्य हों उस दिशा के नक्षर, स्वर, वर्ण, राशि, तिथि और दिशा अस्त होते हैं।
नक्षत्र अस्त हो तो रोग, वर्ण अस्त हो तो हानि, स्वर अस्त हो तो शोक, राशि अस्त हो तो विघ्न, तिथि अस्त हो तो भय, और पाँचों अस्त हो तो मृत्यु होती है। अस्त दिशा के सम्मुख यात्रा, युद्ध, विवाद, भवनद्वार न करें, तथा मारणादि अशुभ कर्म न करें। जिस व्यक्ति के नाम का आदि अक्षर अस्त दिशा में हो वह हर कार्य में दैवहत होता है। नक्षत्र, स्वर, वर्ण और राशि अस्त हो तो विजय की ईच्छा नहीं करनी चाहिए। नक्षत्र उदित हो तो पुष्टि, वर्ण उदित हो तो सुख, राशि उदित हो तो विजय, तिथि उदित हो तो श्री,और पाँचों उदित हो तो पदलाभ होता है।
सूर्यनक्षत्र से ५,८,१४,१८,२१,२२,२३,२४ वाँ नक्षत्र(उपग्रह)पापविद्ध हो तो महाविघ्न करते हैं।
जन्मनक्षत्र(संख्या १), कर्म(जन्मनक्षत्र से १० वाँ), आधान (१९ वाँ), विनाश(२३), सामुदायिक(१८), सांघातिक (१६), ये ६ नक्षत्र ‘नाड़ी’संज्ञक हैं तथा सब के लिए हैं।
राजाओं (राजनेताओं)के लिए तीन अतिरिक्त नाड़ी नक्षत्र हैं : जाति (स्वजातीय नक्षत्र), देश (देश का नक्षत्र,देंखे बृहत्संहिता), राज्याभिषेक(जन्मनक्षत्र से २६ वाँ)। जन्मनक्षत्र क्रूरविद्ध हो तो मृत्यु, कर्मनक्षत्र विद्ध हो तो क्लेश, विनाश में बन्धु से विग्रह, सामुदायिक में अनिष्ट, सांघातिक में हानि, जातिनक्षत्र में कुलनाश , अभिषेक-नक्षत्र मंें वेध से बन्धन, और देश-नक्षत्र में वेध होने से देश का नाश होता है। शुभग्रह के वेध से शुभ होता है। प्रश्नलग्न क्रूरविद्ध हो प्रश्नोक्त कार्य की सिद्धि नहीं होती है। शुभग्रह से वेध का शुभफल होता है। शुभ और अशुभ दोनों प्रकार के ग्रहों से वेध हो तो मिश्रित फल होता है।
प्रश्नकालिक लग्नराशि के चरादि स्वभावानुसार फल होता है।
अज्ञात जन्मकाल वाले व्यक्ति के प्रचलित नाम के अनुसार ही सर्वतोभद्रचक्र का फल होता है।
भारतवर्ष के जिस प्रदेश में अधिक क्रूरग्रहों का वेध और दृष्टि हो उस प्रदेश में प्रजा को पीड़ा, देशनाश, राजा का वध, दुर्भिक्ष, भूकम्प आदि दुष्टफल होते हैं। शुभग्रह से विद्ध प्रदेश का कल्याण होता है। कूर्मचक्र में कृत्तिका सर्वतोभद्र द्वारा पापविद्ध हो तो ब्राह्मण, पुष्य से क्षत्रिय, रेवती से वैश्य, पुनर्वसु से शूद्र विद्ध होते हैं।
अर्घ्य प्रकरण
सर्वतोभद्रचक्र द्वारा पदार्थों की तेजी-मन्दी का ज्ञान होता है। देश,काल और पण्यवस्तु, इन तीनों के वेध को देखकर फल कहना चाहिए। देश तीन प्रकार का होता है : देश(कोसल,मिथिला,आदि), मण्डल(ग्रामसमूह या जिला), और स्थान। काल के भी तीन भेद हैं : वर्ष,मास,दिन। पण्यपदार्थ के भी तीन भेद हैं : धातु, मूल(चन्दनादि), जीव। राहु, शनि, गुरु देश के स्वामी हैं। देशाधिपतियों में जो ग्रह वक्री हो, उदित हो, स्वनवांश में हो, वही ग्रह देशाधिपति होता है। केतु, सूर्य, शुक्र मण्डलेश हैं। चन्द्रमा, मंगल, बुध स्थान के स्वामी हैं। राहु, केतु, शनि, गुरु वर्ष के स्वामी हैं।
मंगल, सूर्य, बुध, शुक्र मास के स्वामी हैं। चन्द्रमा दिन का स्वामी है। शनि, राहु, मंगल धातु के स्वामी हैं। बुध, चन्द्रमा, गुरु जीव के स्वामी हैं। केतु, शुक्र, सूर्य मूलरूपी पण्य के स्वामी हैं। राहु, केतु, सूर्य, गुरु, मंगल पुरुषग्रह हैं। शुक्र, चन्द्रमा स्त्रीग्रह हैं। शनि, बुध नपुसंक ग्रह हैं। शुक्र चन्द्रमा श्वेत वस्तु के, मंगल सूर्य रक्तवर्ण के, बुध गुरु पीले वर्ण के, राहु केतु शनि कृष्णवर्ण के स्वामी हैं। सर्वतोभद्र द्वारा जो पदार्थ पापविद्ध है, वह पदार्थ अपने नाम के नक्षत्र वाले कूर्मचक्रोक्त प्रदेश में मँहगी होती है।
‘सर्वतोभद्र चक्र में ग्रह का बल’
स्वराशिस्थ ग्रह सर्वतोभद्र में पूर्णबली होता है। वक्रीग्रह उच्चराशि में या स्वगृह में हो तब पूर्णबली होता है। नीचराशि में बल आधा होता है। उच्च एवं नीच के बीच में अनुपात से बल जानना चाहिए। मित्रगृह में ३/४ बल, समगृह में आधा, शत्रुगृह में १/४ बल होता है। क्रूरग्रह में विलोम क्रम है : शत्रुगृही क्रूरग्रह का बल पूर्ण होता है(अर्थात् अशुभ फल पूर्ण प्राप्त होता है), समगृही क्रूरग्रह का बल ३/४ होता है,मित्रराशिस्थ में आधा, एवं स्वराशिस्थ हो तो १/४ बली होता है।क्रूरग्रह वक्री हो तो फल दूना अशुभ होता है।क्रूरग्रह उच्चस्थ हो तो फल नगण्य किन्तु शुभग्रह उच्च में हो तो फल तिगुना होता है।शीघ्रगति ग्रह का फल स्वभाव के अनुसार, एवं शुभग्रह नीच में हो तो ग्रह का फल आधा होता है। वेधचक्र में ग्रहदृष्टि द्वारा जिस देश के वर्णादि पाँचों का वेध होता हो तो यह देखना चाहिए कि वेधकर्ता ग्रह देशाधिप का मित्र-सम-शत्रु में से क्या है; तदनुसार उस देश में वस्तुओं का शुभाशुभ फल कहना चाहिए। देश, मण्डल, ग्राम में स्वगृही-मित्र-सम-शत्रु से वेध हो तो क्रमश: पूर्ण, चतुर्थांशोन(३/४), आधा, चतुर्थांश फल होता है।
शुभग्रह के वेध से शुभफल होता है। वेधकर्ता ग्रह अपनी दृष्टि के अनुसार फल का उतना ही भाग देने में समर्थ होता है जितना कि देशाधिपति से वेधकर्ता के मित्र-सम-शत्रु सम्बन्ध द्वारा निर्धारित होता है। शुक्लपक्ष में तिथि विद्ध हो तो उसका पूर्ण शुभ या अशुभ फल मिलता है। किन्तु कृष्णपक्ष में तिथि विद्ध होने पर आधा फल ही मिलता है। ग्रह स्वराशि और अपने अंश में हो तो पूर्णफल देता है। दृष्टिहीन वेध का कोई फल नहीं होता है। यदि शुभग्रह पूर्णदृष्टि से वर्णादि पाँचों का वेध करें तो विंशोपक ५, और क्रूरग्रह वेध करे तो विंशोपक ४ होता है। वर्णादि के स्थानवेध में जितनी दृष्टि हो उसी के अनुपात से विंशोपक निकालें। शुभ तथा अशुभ ग्रहों के विंशोपक अलग अलग रखकर दोनों के अन्तर से शुभ तथा अशुभ फल कहें। धान्यादि पदार्थों के नाम से विंशोपक लेकर उनकी तेजी-मन्दी इसी पद्धति से कहें।
प्राचीन व्यावहारिक गुप्त पद्धति
इंग्लैण्ड के Edgbaston क्रिकेट स्टेडियम में ३० जून २०१९ को भारत और यूके के बीच वर्ल्ड कप वाला मैच । उस मैदान के ठीक केन्द्र वाला अक्षांश−रेखांश और टॉस के काल की कुण्डली प्रस्तुत है । ऊपर सर्वतोभद्रचक्र भी उसी कुण्डली का है । http://wikimapia.org/#lang=en&lat=52.455833&lon=-1.902502&z=18
पृथ्वीचक्र में भारत की राशि सदैव शुक्र ही रहती है और ब्रिटेन की सिंह । प्रस्तुत कुण्डली में एकादशेश अशुभ सूर्य के साथ रहने के कारण भारत के स्वामी शुक्र अशुभ हैं,किन्तु् बलवान राहु के साथ होने और भाग्यस्थ होने के कारण भारत आसानी से हारने वाला नहीं । एकादश की सिंह राशि में स्थित ब्रिटेन के स्वामी सूर्य भाग्यस्थ होने के कारण शुभ हैं अतः ब्रिटेन का पलड़ा भारी ।
सर्वतोभद्र में भारत के “भ” पर शनि,केतु और सूर्य के वेध हैं । “भ” का नक्षत्र है पूर्वाषाढ़ जिसमें शनि और केतु हैं । “भ” पर राजयोगकारक शनि और मूलत्रिकोणस्थ बली केतु की पूर्ण तथा मित्र दृष्टियाँ हैं,एवं सूर्य की ५७ कला या ९५% सम दृष्टि । शनि और केतु तो भारत के लिये शुभ हैं किन्तु एकादशेश सूर्य अशुभ हैं ।
दूसरी ओर ब्रिटेन के मृगशिरा में स्थित “व” पर सूर्य,चन्द्र और शुक्र के वेध हैं । चन्द्र और शुक्र की अतिमित्र दृष्टि है,शुक्र उसी नक्षत्र में हैं अतः पूर्ण दृष्टि है । सूर्य की मृगशिरा के पूर्वार्ध पर शत्रु और उत्तरार्ध पर मित्र दृष्टि है,किन्तु ब्रिटेन के सदैव सिंहस्थ होने के कारण इस मामले में मृगशिरा पर मित्र दृष्टि ही प्रभावी है ।
अतः सर्वतोभद्र में भारत और ब्रिटेन दोनों बली हैं परन्तु भारत के लिये सूर्य अशुभ हैं । सर्वतोभद्र में जिन कारणों से ब्रिटेन बली है उन्हीं कारणों से विराट कोहली का भी “व” बली है । के⋅ राहुल के “क” पर सूर्य का अशुभ वेध पड़ गया । महेन्द्र सिंह धोनी के “म” पर मूलत्रिकोणस्थ बलवान राहु का वेध है,पूर्व फाल्गुनी में स्थित “म” पर दृष्टियों को नीचे ‘चक्र’ के फोटो मे दर्शाया गया है — “म” पर राहु की अतिशत्रु दृष्टि धोनी के लिये अशुभ है ।
हार्दिक के ‘ह’ पर राहु का बलवान और मित्र वेध था,बुध का स्वगृही शुभ वेध था जिस कारण बुध के साथ स्थित नीच के मङ्गल प्रभावी नहीं हो सके,किन्तु सूर्य का अशुभ वेध अधिक काल तक टिकने में बाधक बना ।
उस दिन रविवार पर सूर्य का सर्वतोभद्र वेध था जो ब्रिटेन के लिये शुभ और भारत के लिये अशुभ थे । तिथि थी त्रयोदशी जिसपर सूर्य का वेध था ।
भारत के लिये सर्वोत्तम सर्वतोभद्र वेध था रोहित के ‘र’ पर — मूलत्रिकोणस्थ चन्द्र,मूलत्रिकोणस्थ केतु तथा राजयोगकारक शनि,तथा किसी भी अशुभ वेध का अभाव । परन्तु केतु की दृष्टि १३ कला शत्रु थी जिस कारण रन की गति ६ को पार नहीं कर सकी जो आवश्यकता से कम थी ।
ऋषभ पन्त पर वेध का अभाव था और दृष्टियाँ आधी शुभ एवं आधी अशुभ थीं,अतः प्रदर्शन सामान्य रहा ।
इंग्लैण्ड के ज⋅ बेर्स्टो के उत्तराषाढ़ मे स्थित “ज” पर शनि,केतु और शुक्र के वेध थे । शनि का स्वगृह अत्यधिक शुभ रहा,शुक्र की ४५ कला समदृष्टि भी शुभ थी । केतु शत्रु थे किन्तु शून्य दृष्टि के कारण प्रभावी नहीं हो पाये ।
यह केवल संक्षिप्त उदाहरण है । इस पद्धति का प्रयोग विश्व की सभी घटनाओं के लिये किया जा सकता है ।
सर्वतोभद्र को चक्रराज और त्रैलोक्यदीपक कहा जाता है । त्रैलोक्यदीपक का अर्थ यह है कि स्वर्ग के देवताओं के नामों के अनुसार जीवों या देशों पर उनके शुभ या अशुभ प्रभावों का भी पता लगाया जा सकता है । सर्वतोभद्र वैदिक तन्त्र के यामल मार्ग में आता है,इसका गलत प्रयोग कोई करे तो उसे यह चक्र नष्ट कर डालता है ।
(नक्षत्रों पर दृष्टि जानने के लिये कुण्डली सॉफ्टवेयर में भावचलित पन्ने पर ‘चक्र’ बटन दबायें,भचक्र पर माउस टहलाकर दृष्टि पता लगायें ।)