Sapta Nadi Chakra

सप्त-नाड़ी-चक्र मौसम की भविष्यवाणी, विशेषकर वर्षा की भविष्यवाणी में बहुत उपयोगी है। सप्त-नाड़ी-चक्र दो प्राचीन स्रोतों के आधार पर दो प्रकार हैं:
नरपति-जय-चर्या और कृषि-पराशर, और बाद के सभी ग्रन्थ उन पर आधारित हैं, जैसे कादम्बिनी ।
सप्त-नाड़ी-चक्र का मूल स्रोत एक तान्त्रिक ग्रन्थ 'यामलीय-स्वरोदय' था।

यहाँ, वर्तमान में कई पारम्परिक पञ्चाङ्गों द्वारा उपयोग किए जाने वाले सप्त-नाड़ी-चक्र के दोनों रूपों को प्रस्तुत किया जा रहा है :

प्राचीन सही पद्धति :
नाड़ी चण्डा वायु दहना सौम्या नीरा जल अमृत
स्वामी शनि बृहस्पति मङ्गल सूर्य शुक्र बुध चन्द्रमा
नक्षत्र
नक्षत्र १६ १५ १४ १३ १२ ११ १०
नक्षत्र १७ १८ १९ २० २१ २२ २३
नक्षत्र २८ २७ २६ २५ २४
नरपति-जय-चर्या :
नाड़ी चण्डा वायु दहना सौम्या नीरा जल अमृत
स्वामी शनि सूर्य मङ्गल बृहस्पति शुक्र बुध चन्द्रमा
नक्षत्र
नक्षत्र १६ १५ १४ १३ १२ ११ १०
नक्षत्र १७ १८ १९ २० २१ २२ २३
नक्षत्र २८ २७ २६ २५ २४

चण्डा-नाड़ी = प्रचण्ड वायु
वायु-नाड़ी = सामान्य से कुछ तीव्र
दहना-नाड़ी = अधिक ताप
सौम्या-नाड़ी = सामान्य जलवायु
नीरा-नाड़ी = सामान्य से कुछ अधिक वर्षा
जल-नाड़ी = नीरा-नाड़ी से अधिक वर्षा
अमृत-नाड़ी =अत्यधिक वर्षा

चण्डा-नाडी में कृत्तिका ( = संख्या ३, अश्विनी से अङ्कन आरम्भ होता है) से आरम्भ करें और नाड़ियों के नक्षत्रों को सर्पिल तरीके से निदेशित करें जैसा कि ऊपर की तालिकाओं में दिखाया गया है । पारम्परिक ग्रन्थ सप्त-नाड़ी-चक्र को भ्रामक तरीके से प्रस्तुत करते हैं, जिससे यह निर्धारित करना कठिन हो जाता है कि दोनों में से कौन सा चक्र सही है । यहाँ दोनों को एक सुव्यवस्थित पद्धति से प्रस्तुत किया गया है, जिससे यह देखना आसान हो जाता है कि प्रथम तालिका सही है, क्योंकि इसमें ग्रहों को उनकी भूस्थैतिक (या मरुकेन्द्रिक) दूरियों के अनुसार रखा गया है: शनि-बृहस्पति-मङ्गल-सूर्य- शुक्र-बुध-चन्द्रमा । नरपतिजयचर्या में बृहस्पति और सूर्य को गलत नाड़ियों का स्वामी बताया गया है ।
नरपतिजयचर्या को चौखम्बा संस्कृत संस्थान (वाराणसी) से प्राप्त किया जा सकता है । इसमें इस चक्र के प्रयोग के कुछ प्राचीन नियम बताए गए हैं ।

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