Ram Rahim

गुरमीत सिंह उर्फ़ राम-रहीम की कुण्डली

जन्म के आँकड़े

जन्मस्थान :— श्री गुरुसर मोडिया, श्री गंगानगर, राजस्थान | (जिस कमरे में जन्म हुआ उसका शुद्ध मान निम्न है :— )
अक्षांश :— 29 : 35 : 50.4636
रेखांश :— 73 : 56 : 27.7656
वेब लिंक :— "जन्मस्थान" पर क्लिक करें |
जन्मदिन :— 15 अगस्त 1967 (यह सबको ज्ञात है)
जन्मकाल :— 03:18:56.7 बजे IST (यह उसे भी पता नहीं है किन्तु सूर्यसिद्धान्तीय Kundalee सॉफ्टवेयर द्वारा जाँच करने पर जीवन की मुख्य घटनाओं का अत्यधिक शुद्धि के साथ स्पष्टीकरण कर सकते हैं, बशर्ते ऋषियों के अनुसार चलें)|

अज्ञात जन्मकाल वाले की कुण्डली बनाने की विधि

स्वभाव और संस्कार से लेकर राजयोग और कारावास-योग सब पकड़ में आ जायेंगे | जेल की सजा भले ही ठोस सबूतों पर आधारित नहीं हो किन्तु आजीवन जेल के योग्य है यह भी स्पष्ट हो जाएगा | भयंकर कामुक और महापापी है | असली ज्ञान और धर्म का कट्टर विरोधी है | इसके चेले भी कैसे गुण्डे हैं यह भी स्पष्ट हो जाएगा |
विम्शोत्तरी दशा आधे घंटे की भी त्रुटि नहीं देगी | मैंने जो जन्मकाल दिया है उसमें एक सेकंड के दसवें भाग की भी त्रुटि नहीं है | इतना शुद्ध जन्मकाल मैंने कैसे ज्ञात किया इसका तरीका बताने से लाभ के बदले नुकसान ही होगा, क्योंकि आत्मशुद्धि हेतु वर्षों तक जो जप-तप करना पडेगा वह अत्यंत दुष्कर है | प्रमाण है पाराशरी होराशास्त्र की विधि द्वारा फलादेश की जाँच | फिर भी शुद्ध जन्मकाल ज्ञात करने की विधि का संक्षेप में वर्णन कर रहा हूँ (भिन्न-भिन्न व्यक्ति के लिए भिन्न-भिन्न विधि का प्रयोग करना पडेगा, किन्तु सामान्य पद्धति नहीं बदलती)|
पहले तो यह स्पष्ट कर दूं कि लाखों लोगों को गलत बातें सिखलाने, अनेकों लड़कियों को धर्म के नाम पर ठगकर उनका जीवन नष्ट करने और देश में भयंकर काण्ड मचचाने वाले की कुण्डली जाँचने से यही लाभ होगा कि ज्योतिष सीखने में सहायता मिलेगी | इस तरह के अध्ययन को केस-स्टडी कहते हैं | बिना केस-स्टडी के ज्योतिष कोई नहीं सीख सकता |
गुरमीत सिंह का जन्मदिन सर्वविदित है किन्तु समय अज्ञात है | चौबीस घंटो में लग्न और आठ ग्रहों की राशियाँ बारह बार से अधिक बदलती हैं (चन्द्रमा की राशि 45% बदलती है, अन्य ग्रहों की प्रायिकता अल्प है)| किन्तु भावचलित में एक दिन में लगभग सौ कुण्डलियाँ बदलती हैं | एक दिन में चन्द्रमा औसतन तेरह अंशों से अधिक गमन करता है जिस कारण विंशोत्तरी में एक पूरा नक्षत्र बदल जाता है और फलकाल में छ से बीस वर्षों तक का अन्तर पड़ सकता है | अतः तुक्केबाजी द्वारा सही समय ज्ञात करना सम्भव नहीं, ज्योतिष का गहन ज्ञान और अनुभव आवश्यक है | गुरमीत सिंह के जन्मदिन में चौबीस घंटो के दौरान लग्न बारह बार बदलता है और चन्द्रमा ज्येष्ठा से मूल नक्षत्र में जाता है | पच्चीस अगस्त 2017 को दिन में ढाई बजे की विम्शोत्तरी की जाँच आवश्यक है जब इसका राजयोग समाप्त हुआ और जेल जाना पडा |
इस पूरे दिन बृहस्पति एकमात्र ग्रह हैं जो उच्च में हैं, मंगल मित्रगृही हैं, अन्य सारे ग्रह संगृही, शत्रुगृही या नीचस्थ हैं | अतः बृहस्पति का इसके राजयोग से सीधा सम्बन्ध है | किन्तु चौबीसों घंटे सूर्य और बुध भी बृहस्पति की ही राशि में हैं, अतः उनका भी राजयोग से सम्बन्ध है, क्योंकि लघु पाराशरी के अनुसार ग्रह अपने सम्बन्धी की दशा-अन्तर्दशा आदि में ही मुख्य फल देते हैं | बृहस्पति का बुध से वैर है किन्तु सूर्य से सम सम्बन्ध है और ब्रहस्पति सूर्य में अस्त भी हैं, अतः राजयोग का कारक मुख्यतः सूर्य है, बृहस्पति नहीं | उस दिन के आरम्भ की मध्यरात्रि को विंशोत्तरी महादशा जेल जाने के काल में चन्द्रमा का 75% व्यतीत थी, और दिन समाप्ति की मध्यरात्रि को राहू का 22% व्यतीत थी (बीच में मंगल की दशा थी)| अर्थात चौबीस घंटो में विंशोत्तरी दशा में साढ़े तेरह वर्षों का अन्तर आता है | सूर्य और बृहस्पति का राजयोग उनको किन भावों में रहने से जीवन की घटनाओं से मेल खायेगा और जेल जाने के समय चन्द्रमा, मंगल या राहू को जेल से सम्बन्ध रखना पडेगा, इन तथ्यों पर ध्यान देते हुए विभिन्न सम्भावनाओं की जाँच करने पर जो कुण्डली बनती है, उसमें मंगल का जेल से सम्बन्ध बनता है और बृहस्पति को दूसरे भाव में रखना पड़ता है, तब जेल जाने के समय मंगल की दशा आरम्भ मानें तो जो जन्मकाल रखना पडेगा वही मैंने दिया है, जो जीवन के समस्त लक्षणों और प्रमुख घटनाओं से भी मेल खाता है | यह पूरी जाँच दीर्घ और क्लिष्ट प्रक्रिया है, यहाँ केवल संक्षेप में विधि बता रहा हूँ | प्रमुख ग्रहों पर अधिक ध्यान देना चाहिए |

फलादेश

जो जन्मकाल ज्ञात हुआ है उसके अनुसार फलादेश निम्नोक्त है |
राजयोगकारक सूर्य की सिंह राशि में स्थित शुक्र की महादशा (1982 से 2002 तक) में हल्का राजयोग आरम्भ हुआ | शुक्र स्त्रीग्रह हैं और तीसरे भाव में स्थित होने पर पापफल देते हैं | पञ्चम और द्वादश के स्वामी हैं | अतः इन तीन भावों एवं पूर्ण दृष्टि वाले धर्म के नवम भाव पर सबसे अधिक (पाप का) प्रभाव है | पञ्चम है सांसारिक विद्याओं और पुत्रों वा शिष्यों का भाव, तथा द्वादश है मोक्ष का भाव | अतः शुक्र की दशा में जो राजयोग प्राप्त हुआ उसका प्रभाव धर्म, मोक्ष एवं शिष्यों की वृद्धि से सम्बन्धित रहा, किन्तु सबपर पाप का बोलबाला रहा | परन्तु शुक्र की दशा बलवान नहीं थी, अतः सूर्य के प्रभाववश जो राजयोग मिला उसका आधा बल ही प्रभावी था — भावेश की भाव पर दृष्टि न हो तो आधा प्रभाव रहता है |
सूर्य की महादशा 2002 के फरवरी मे आरम्भ हुई | यह पूर्ण बलवान राजयोग की दशा थी क्योंकि उच्च के बृहस्पति सूर्य में अस्त थे | धनभाव में रहने के कारण धन का राजयोग था | कोई ग्रह तीसरे का स्वामी हो तो पापफल देता है और यदि वह ग्रह नैसर्गिक पापग्रह हो तो पापफल की वृद्धि होती है | अतः सूर्य का राजयोग पापमय था | नैसर्गिक शुभग्रह यदि केन्द्रेश हो तो पापफल देता है | बृहस्पति जिन दो भावों के स्वामी हैं वे दोनों केन्द्र हैं - सप्तम एवं दशम | अतः केन्द्राधिपति-दोष प्रबल है | उच्च के बृहस्पति सूर्य में अस्त हैं | अतः सूर्य की दशा में सप्तम (काम), पराक्रम (तृतीय) और प्रसिद्धि एवं राजनैतिक वर्चस्व (दशम ) में पापमय राजयोग का काल रहा | लग्नेश और चतुर्थेश होने के कारण बुध भी सूर्य और बृहस्पति के साथ हैं, किन्तु सूर्य समगृही हैं एवं बृहस्पति से भी सम हैं जबकि बुध अतिशत्रुगृही है और बृहस्पति भी उनके अतिशत्रु हैं, और सूर्य भी उनके शत्रु हैं | अतः बुध का शुभ राजयोग अत्यधिक निर्बल है | बुध का यह निर्बल शुभ राजयोग शैशवावस्था में ही बीत गया, जन्म से लेकर आठ वर्ष की आयु तक | अतः बृहस्पति, बुध और सूर्य का सम्मिलित फल पापमय ही है | काम (सप्तम) के स्वामी उच्च के भी हैं और दशमेश होने के कारण प्रबलतम केन्द्राधिपतिदोष के कारण अत्यधिक बलवान पापपूर्ण कामुकता का राजयोग बना रहे हैं ! सूर्य की दशा में ही बलात्कार जैसे काण्ड आरम्भ हुए, उससे पहले इतनी शक्ति नहीं थी, शुक्र की दशा में ऐसे कर्म छुपकर करने के योग थे, बलपूर्वक नहीं |
सूर्य की शत्रुदृष्टि केवल चार भावों पर है – लग्न अर्थात स्वभाव और चरित्र, चतुर्थ अर्थात विवेक, अष्टम अर्थात गुप्त ज्ञान, एवं नवम अर्थात धर्म | अतः सूर्य का पापमय प्रभाव इन चार भावों पर सर्वाधिक पडा, खासकर नवम और अष्टम पर अत्यधिक अतिशत्रु दृष्टि थी | अतः वास्तविक धर्म से भयंकर वैर था | किसी देवी-देवता की तस्वीर भी इसको सहन नहीं थी | आत्मकारक सूर्य ही थे, अतः इन प्रभावों में वृद्धि ही हुई | आत्मकारक ही स्वभाव के प्रमुख लक्षणों का स्वामी है, बशर्ते आत्मकारक प्रभावशाली हो जैसा कि इस मामले में है | किन्तु आत्मकारक सबसे प्रबल नहीं हैं, वरना लग्नकुण्डली निष्प्रभावी हो जाती और केवल सूर्यकुण्डली ही फल देती |
सूर्य के पश्चात चन्द्रमा की महादशा दस चान्द्रवर्षों तक रही | छठे घर में नीच के ग्रह विपरीत राजयोग बनाते हैं | अतः अकस्मात अपार धन का राजयोग धनेश चन्द्रमा के काल में बना | शत्रुगृह में बैठने के कारण शत्रुता द्वारा धन उपार्जित किया गया | चन्द्रमा को दूसरा राजयोग भी है – धनभाव में उनकी राशि में राजयोगकारक ग्रहों से भावेशदृष्टि सम्बन्ध भी है और परस्पर दृष्टि-सम्बन्ध भी | अतः बृहस्पति के राजयोग का जो फल उनके सम्बन्धी सूर्य को मिला वैसा ही चन्द्रमा को भी मिला | फलस्वरूप चन्द्रमा की महादशा में सूर्य से भी प्रबल राजयोग रहा | चन्द्रमा स्त्रीग्रह हैं, उनका कामुकता और धन के राजयोग से सम्बन्ध हो और शत्रु को ध्वस्त करने का भी राजयोग हो तो कामुकता की राह में CBI क्या कर लेगी ? अतः सारे मुक़दमे धूल फाँकते रहे | धर्मभाव पर चन्द्रमा की भी शत्रुदृष्टि थी | किन्तु चन्द्रमा की शत्रुदृष्टि राज्य के दशम भाव पर भी थी | अतः कांग्रेस से सम्बन्ध बिगड़ा जिस कारण भाजपा से सम्बन्ध सुधारने के प्रयास हुए | चन्द्रमा का सर्वतोभद्र वेध “न” पर था, अतः नरेन्द्र मोदी के पक्ष में कार्य किये | किन्तु मंगल का भी “न” पर सर्वतोभद्र वेध है, जिस कारण मंगल की दशा आरम्भ होते ही उसी नरेन्द्र मोदी ने जेल की हवा खिला दी (मंगल का वेध "म" पर भी है, अतः जेल भेजने में मनोहर खट्टर का भी हाथ है, मंगल और शनि का वेध "ज" पर भी है जो जज का नाम है), वरना एक कनिष्ठ जज इनको जेल नहीं भेज पाते | मनोहर खट्टर ने बेहतरीन बयान दिया है – इनको पुचकारकर अदालत में हाजिर कराना था जिसका अन्यथा अर्थ नहीं निकालना चाहिए !
चन्द्रमा राक्षस नवांश में हैं, अतः चन्द्रमा का राजयोग बलात्कार का योग भी देता है ! किन्तु केवल इसी कारण से बलात्कार का योग नहीं बनता है | मुख्यतः बृहस्पति और तत्पश्चात सूर्य की युति कामुकता के पापमय कारक हैं | जायाकारक (कामकारक) शनि बृहस्पति के पूर्ण वश में हैं | इन सबका सम्मिलित फल है राक्षसी कामुकता जिसका दण्ड भारतीय धर्मशास्त्र के अनुसार है मृत्युदण्ड |
तीसरे, छठे और ग्यारहवें भावों के स्वामी उत्तरोतर पाप और अशुभ का फल देते हैं | इनकी कुण्डली में छठे और ग्यारहवें भावों के स्वामी मंगल हैं, अतः सर्वाधिक अशुभ ग्रह हैं | पञ्चम भावस्थ हैं, अतः पापी और हिंसक शिष्यों की फ़ौज मिली | किन्तु अशुभ होने के कारण मंगल ने जेल की हवा खिलाई | छठे भाव का स्वामी जेल से सम्बन्ध रखता है और वह यदि ग्यारहवें भाव का भी स्वामी हो तो अत्यधिक अशुभ बन जाता है | इस वर्ष की वर्षप्रवेश कुण्डली में मंगल नीच का है, अस्त भी है और बारहवें भाव (हानि) का भी स्वामी है |
इसी प्रकार अन्य षोडश वर्ग भी देखे जा सकते हैं | अन्य वर्गों का प्रभाव लग्नवर्ग की तुलना में कमजोर होता है, अतः उनमें कोई ग्रह अत्यधिक बलवान हो तभी फल दे पाता है | षष्ट्यंश वर्ग अत्यधिक बलवान है किन्तु केवल राजकुल वालों में ही उसका प्रयोग होता है |
इस कुण्डली की सबसे बड़ी खासियत यह है कि सबसे बलवान ग्रह बृहस्पति पापग्रह हैं और आत्मकारक सूर्य भी तृतीयेश होने के कारण पापग्रह हैं, और दोनों का परस्पर घनिष्ठ सम्बन्ध है | सूर्य का सम्बन्ध बुध से भी है, किन्तु बुध बहुत निर्बल हैं जिस कारण उनका शुभ प्रभाव दबा रह गया | इन कारणों से अत्यधिक पापी स्वभाव है किन्तु प्रचण्ड धनयोग भी है |
मंगल के कारण इनको दो लाभ भी मिले | हिंसक गुण्डे चेले बने और आयेश होने के कारण उन चेलों की बदौलत आमदनी भी हुई |

वैकल्पिक जन्मकाल

एक सूचना मिली है कि स्कूल के सर्टिफिकेट में जन्मदिन 10 जुलाई है | मैंने उसकी भी जाँच कर ली है | सारे ग्रह बिलकुल वैसे ही फल दे रहे हैं, केवल चन्द्रमा नीच के स्थान पर स्वगृही है, किन्तु छठे भाव में नीच ग्रह राजयोग बनाता है और अच्छे भावों में स्वगृही ग्रह भी राजयोग बनाते हैं | किन्तु जन्मदिन 10 जुलाई मानने पर विम्शोत्तरी दशाओं के लिए जन्मकाल में परिवर्तन करना पड़ता है | मंगल जेल का योग नहीं बना पाता, चन्द्रमा की महादशा में जब उसके शत्रु की अन्तर्दशा और अन्तर्दशाकारक के शत्रु का प्रत्यन्तर आता है तब जेल का योग बनता है | किन्तु 15 अगस्त से जो कुण्डली बनती है वह घटनाओं और स्वभाव से पूरा मेल खाती है |

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