In BPHS, the chapter on Shadbala (Spashta-bala-nirnaya) is followed by the chapter on Ishta-Kashta in which verse-9 and 10 describe the Shubha and Ashubha "anka" (ie number indicating auspicious and inauspicious stengths).
The scaling of this main strength is based on geometric progression or power series which is same as logarithmic scale with base "2". In the preceding chapter, shadbala has minimum and maximum shadbala differing only by about 2, ie, maximum shadbala is only about twice of minimum shadbala, while the main strength has a difference of twice in two successive scales, excepting MT (Moolatrikona) and Adhimitra : the scaling is 60-45-30-22-15-8-4-2-0 respectively for Uchcha-MT-Svagrihi-… etc.
Therefore, shadbala in needed only when the main strengths of two competing planets are equal.
पाराशरी दशाफलाध्याय को जो समझने का प्रयास करेगा, वह षड्बल का प्रयोग सर्वत्र नहीं करेगा । उच्च-मूलत्रिकोण-स्वगृही-अतिमित्रगृही-मित्रगृही-समगृही-शत्रुगृही-अतिशत्रुगृही क्रम से ग्रहों के शुभ और अशुभ अँक देखने का आदेश बल अध्याय के बाद वाले इष्टकष्ट अध्याय में है जिसका प्रयोग दशाफल में किया गया है । षड्बल के अंतर्गत जिस उच्चादि बल का प्रयोग है वह शुभ-अशुभ गृहांक से भिन्न अल्प महत्त्व का बल है । षड्बल का मान दोगुने से अधिक नहीं होता किन्तु शुभ-अशुभ गृहांक शून्य से ६० तक है जो मुख्य बल है । समस्त फलित ग्रंथों ने इसी को आधार मानकर फलादेश किया है और यही व्यवहारिक परम्परा रही है । । षड्बल का अत्यधिक दुरुपयोग करने की प्रथा आधुनिक काल की बीमारी है । यह मुख्य बल (शुभ-अशुभ गृहांक) जब समान हो, केवल तभी षड्बल का प्रयोग होना चाहिए ।