Fani

फणि चक्रवात —

नक्षत्रचक्र सीमित उद्देश्यों के लिये ही प्रयुक्त होता है,जैसे कि वर्षा की मात्रा जानने के लिये,जबकि सभी उद्देश्यों के लिये “वर्षफल” का प्रयोग करना चाहिए जिसके पाँच स्तर होते हैं । Kundalee सॉफ्टवेयर में NOW बटन दबाने पर इष्टकाल हेतु “वर्षफल” के सभी स्तरों की संख्याएँ मिलेंगी । जिस स्तर का “वर्षफल” बनाना हो उसकी संख्याएँ Kundalee सॉफ्टवेयर में दर्ज करके स्टार्ट बटन दबाने पर इष्टकालिक मेदिनीचक्र मिलेगा ।

वर्षफल के किस स्तर अथवा नक्षत्रचक्र का मेदिनीचक्र बनाना चाहिए इसका चुनाव करने का आधार यह होना चाहिए कि जिस घटना की जाँच करनी है उसका प्रभावकाल किस कालखण्ड से मेल खाता है । नक्षत्र का प्रभाव लगभग दो सप्ताह तक रहता है । वर्षफल का प्रभाव एक वर्ष तक रहता है । वर्षफल के दूसरे स्तर,अर्थात् मासफल,का प्रभाव एक मास तक रहता है । वर्षफल के तीसरे स्तर ‘प्रत्यन्तर विदशा’ का प्रभाव ढाई सौरदिन का होता है,अर्थात् सूर्य के ढाई अंशभोग का,जो सामान्य (सावन) दिनों में लगभग ढाई दिनों से कुछ अधिक का होता है ।

फणि चक्रवात के मुख्य प्रभाव का काल लगभग एक ‘प्रत्यन्तर विदशा’ के काल से मेल खाता है । अतः उस काल की ‘प्रत्यन्तर विदशा’ की सूचना चाहिए । जगन्नाथपुरी में फणि चक्रवात का भूस्पर्श (लैण्डफॉल) ३ मई को ८ बजे प्रातः हुआ था । Kundalee सॉफ्टवेयर का Medini फोल्डर चुनें और विदिशा−देशचक्र (Vidisha DeshaChart) चुनकर “Desired Time” वाले खानों में दिनाङ्क ३−५−२०१९ तथा समय ८−०−० भरकर बटन दबा दें,उस काल की कुण्डली बन जायगी जिसपर ध्यान न दें,उन पन्नों में सबसे ऊपर वाञ्छित काल के वर्षफल की सभी संख्यायें मिल जायेंगी । वर्ष की संख्या तो १ ही रहेगी,इष्ट मास की संख्या भी १ मिलेगी क्योंकि मेषारम्भ से आरम्भ होने वाले सौरवर्ष का पहला सौरमास ही चल रहा है । उसके बाद ‘प्रत्यन्तर विदशा’ की संख्या ८ मिलेगी जिसका अर्थ यह है कि सौरमास की कुल १२ प्रत्यन्तर विदशाओं में आठवीं विदशा चल रही है ।

अब Kundalee सॉफ्टवेयर के Medini फोल्डर में और विदिशा−देशचक्र में वर्ष २०१९ रहने दें,अन्य कोई छेड़छाड़ न करें,और नीचे वर्षफल−दशा की संख्या “३” भरें,जिसका अर्थ यह है कि तीसरे स्तर अर्थात् ‘प्रत्यन्तर विदशा’ का देशचक्र बनाना है । उसके नीचे मासफल की संख्या “१” रहने दें प्रत्यन्तर की संख्या “८” भर दें और स्टार्ट बटन दबा दें । वाञ्छित देशचक्र बन जायगा जिसके नीचे उसका आरम्भकाल मिलेगा — २ मई २०१९ को १५−४८−२०⋅८३ बजे से लेकर अगले ढाई सौरदिनों तक । भारत के मानचित्र पर उस प्रत्यन्तर के प्रवेशकाल की कुण्डली मिल जायगी । जगन्नाथपुरी का भूभाग सप्तम भाव में मिलेगा किन्तु जगन्नाथपुरी सप्तमभाव के अन्त में हैं,नगर से उत्तर अष्टमभाव आरम्भ है,जगन्नाथपुरी नगर की उत्तरी सीमा पर चक्रवात का भूस्पर्श हुआ जहाँ अष्टमभाव का आरम्भ हुआ और इस चक्रवात का सम्पूर्ण कार्यक्षेत्र अष्टमभाव में ही रहा ।

सप्तमभाव पर चक्रवात के भूस्पर्श से पहले चक्रवात का आंशिक प्रभाव पड़ा । सप्तमभाव में चन्द्रमा और शुक्र हैं तथा सप्तमेश बृहस्पति हैं,ये तीनों दहना नाड़ी में हैं,अतः तापमान अधिक था किन्तु वायुवेग या वृष्टि का कोई विशेष प्रकोप नहीं था । परन्तु अष्टमभाव स्वयं तो मृत्यु का अशुभ भाव है ही,अष्टमभाव में स्थित सूर्य चण्डानाड़ी में तथा बुध वातनाड़ी मे हैं एवं लग्न नीड़ा नाड़ी में है । लग्न के नीड़ा नाड़ी में रहने से देश के बड़े हिस्से में वर्षा का योग बनता है किन्तु लग्न में कोई ग्रह नहीं है,अतः वर्षा का यह योग मुख्यतः लग्नेश के भाव में ही बनेगा । लग्नेश बुध हैं जो अष्टमभाव में हैं । अतः अष्टमभाव में वर्षा का योग है । अष्टमभाव मृत्यु का भाव है,उसमें वर्षा का योग हो तो अशुभ वर्षा होती है जिसे “दुष्टवृष्टि” कहते हैं । किन्तु बुध लग्नेश और दशमेश होने के कारण राजयोगकारक हैं जिस कारण अष्टमभाव में जितना दुष्टफल होता वैसा नहीं हो सका । किन्तु बुध के साथ सूर्य भी हैं जो उच्च मे रहने के कारण बुध की तुलना में अत्यधिक बली हैं । अत्यधिक बली होने के कारण बुध के प्रभाव को सूर्य ने दबा दिया किन्तु बुध से स्थानसम्बन्ध के कारण बुध के फल को सूर्य ने ले लिया,अर्थात् बुध द्वारा जो फल मिलता वह सूर्य के द्वारा मिला । सूर्य द्वादशेश होकर अष्टम में हैं जो प्रचण्ड “विपरीत राजयोग” है । “विपरीत राजयोग” का फल सामान्यतः अच्छा होता है किन्तु अष्टम में उच्च का ग्रह अत्यधिक अशुभ होता है ।

बुध के लग्नेश होने के कारण नीड़ानाड़ी का फल और बुध के वातनाड़ी में रहने के कारण वात — ये दोनों फल जब अष्टमभाव की अशुभता में जुड़ते हैं तो चक्रवात का योग बनाते हैं । किन्तु बुध शुभ हैं,अतः केवल बुध का ही प्रभाव रहता तो मामूली चक्रवात बन पाता । परन्तु चण्डानाड़ी में स्थित उच्च के सूर्य ने अष्टमभाव में प्रवण्ड वातकोप का योग बना दिया । अतः प्रचण्ड चक्रवात का योग बना । किन्तु बुध और सूर्य दोनों में शुभत्व भी था जिस कारण मृत्युभाव में रहने के वावजूद मृत्युफल नगण्य रहा । एसा प्रचण्ड चक्रवात बीस वर्ष पहले ओडिशा में आया था तो दस हजार लोग मरे थे ।

केवल प्रत्यन्तर का फल नहीं होता,उसमें वर्षफल और मासफल भी जुड़ता है तब कुलफल बनता है । मास पहला होने के कारण वर्षकुण्डली और मासकुण्डली एक ही थी । उसमें उपरोक्त चक्रवात का क्षेत्र अष्टमभाव में ही था जिसमें लग्नेश सूर्य उच्च के होकर बैठे थे । कोई राजयोग या विपरीत राजयोग नहीं था,लग्नेश अष्टम में हो तो अशुभ फल होता है,और अष्टम में उच्च का ग्रह अत्यन्त अशुभ होता है । लग्न नीड़ानाड़ी में था जिस कारण लग्नेश सूर्य वर्षा का योग दे रहे हैं । सूर्य स्वयं वातनाड़ी में हैं,अतः वर्षा और वात के योग परस्पर जुड़ रहे हैं । अष्टमभाव में उच्च के सूर्य अत्यधिक अशुभ वर्षा सहित वातकोप का योग बना रहे हैं ।

अतः वर्षफल में चक्रवात का योग है । इस वर्ष के बारहों मासों में से पहले मास में ही ऐसा फल मिलता है,अतः पहले मास में ही ऐसा फल वर्षकुण्डली देगी । पहले मास के बारह प्रत्यन्तरों में से आठवें प्रत्यन्तर में ही ऐसा चक्रवात का योग बनता है । अतः वर्षफल और मासफल की कुण्डलियों में जो चक्रवात का योग है वह पहले मास के आठवें प्रत्यन्तर में ही घटित होगा । आठवें प्रत्यन्तर की भी जब चतुर्थ और पञ्चम स्तरों की कुण्डलियाँ बनायेंगे तो ढाई सौर दिनों के प्रत्यन्तर के अन्तर्गत कब−कब कहाँ−कहाँ कैसा फल मिलेगा इसका सूक्ष्म ज्ञान प्राप्त कर सकते हैं । चतुर्थ स्तर लगभग पाँच घण्टों तक प्रभावी रहता है और पञ्चम स्तर लगभग २५ मिनट का होता है ।

वर्षफल का विंशोपक−बल मासफल से १२⋅६४ गुणा अधिक होता है किन्तु वर्षफल का प्रभावी काल १२ गुणा अधिक होता है,अतः किसी विशेष काल में वर्षफल और मासफल के अन्य योग समान हो तो दोनों कुण्डलियों के फल लगभग समान बल के होंगे । उक्त तीनों स्तरों की कुण्डलियों में अष्टमभाव में समान भूभाग हैं जिसपर उच्च के सूर्य का चक्रवात योग तीनों कुण्डलियों में है,अतः तीनों कुण्डलियाँ एक दूसरे के चक्रवात−योग को बढ़ा रही हैं,अतः परिणामी फल हुआ ‘सुपर−सायक्लोन’ । प्रत्यन्तर कुण्डली में सूर्य के विपरीत−राजयोग तथा बुध के राजयोग ने बड़ी संख्या में मृत्यु नहीं होने दी ।

यह मुख्य फलादेश है । सूक्ष्मता के लिये अन्य लक्षणों की भी जाँच करनी चाहिये । उदाहरणार्थ तीनों कुण्डलियों में सूर्य की इष्टरश्मि सूर्य की कष्टरश्मि से तीन गुणी अधिक है,अतः चक्रवात का कष्टफल घट गया । कूर्मचक्र के अन्तिम खण्ड में सूर्य हैं जो पूर्वोत्तर का भूभाग है । अतः अष्टमभाव में भूस्पर्श के उपरान्त पूर्वोत्तर की ओर चक्रवात का गमन हुआ । प्रत्यन्तरचक्र में सर्वाधिक सर्वतोभद्रवेध “पु” पर है — सूर्य और बुध का वेध “उ” स्वर पर एवं मङ्गल−केतु का वेध ”प” पर,अतः पुरी पर आक्रमण हुआ । सर्वतोभद्र में सूर्य का वेध “शुक्रवार” पर और “चतुर्दशी तिथि” पर था,ये दोनों ३ मई २०१९ को थे । सर्वतोभद्र में सूर्य से मेषराशि भी विद्ध थी,अष्टमभाव का अधिकांश मेष में ही था ।

राजज्योतिष की इस प्राचीन पद्धति को राजाओं के राजज्योतिष ही जानते थे किन्तु सबको नहीं पढ़ाते थे ताकि शत्रुदेशों को इसका ज्ञान न हो । किन्तु पिछले सहस्र वर्षों से हिन्दू राज्यों के पतन के फलस्वरूप राजज्योतिष की प्राचीन विधि हिन्दू ज्योतिषी भी भूल गये और ज्योतिष में धूर्त धन्धेबाजों की संख्या बढ़ने लगी जो प्राचीन विधियों को न तो सीखेंगे और न किसी को सीखने देंगे,केवल गरियायेंगे । किन्तु उपरोक्त लेख में जिन विधियों का प्रयोग किया गया है उनका वर्णन जिन प्राचीन ग्रन्थों में है वे आज भी सर्वसुलभ हैं ।

उपरोक्त लेख में वर्णित फणि चक्रवात की प्रत्यन्तर−विदशा की जाँच कैसे करें इसके लिये Kundalee-सॉफ्टवेयर में डाटा कैसे भरें और आउटपुट कैसा होगा इसकी सहायता हेतु स्क्रीनशॉट इस वेब पृष्ठ के नीचे FILES बटन को क्लिक करने पर Fani.jpg फोटो मिलेगा जिसे डाउनलोड करके देशचक्र देखा जा सकता है ।

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