Table of Contents
|
ज्योतिष और आधुनिक मौसमविज्ञान में एक प्रमुख अन्तर यह है कि ज्योतिष केवल उन घटनाओं का अध्ययन करता है जिनका प्राणियों पर अच्छा−बुरा प्रभाव पड़ता है । यदि हिन्द महासागर के किसी चक्रवात का किसी जीव पर प्रभाव नहीं पड़ता अथवा पड़ता भी है किन्तु उसका कोई साक्ष्य आपके पास नहीं है तो उस चक्रवात की जाँच के लिए ज्योतिष नहीं है । किन्तु जिन परिघटनाओं का प्रभाव जीवों पर पड़ता है उनकी जाँच के लिए आधुनिक मौसमविज्ञान की तुलना में ज्योतिष करोड़ो गुणा श्रेष्ठ है ।
मेदिनी ज्योतिष का प्रथम स्तर : पृथ्वीचक्र
“कुण्डली सॉफ्टवेयर” के मेदिनी फोल्डर में MeruWorldChart को चुनें और वर्ष में २०२३ भरें,अन्य कोई परिवर्तन न करें और “शो” बटन दबा दें,पृथ्वी की वर्षकुण्डली बन जायगी ।
इसमें भारत वृष में हैं और वृष के स्वामी शुक्र स्वगृही होकर वृष में हैं । स्वगृही ग्रह सामान्यतः शुभ फल देते हैं किन्तु शुक्र ३ और १० के स्वामी होने के कारण अत्यधिक अशुभ हैं क्योंकि कोई भी ग्रह तृतीयेश हो तो अशुभ फल देता है और नैसर्गिक शुभ ग्रह दशमेश हो तो बहुत अशुभ होता है । यह सामान्य नियम है जिसमें कुछ विशिष्टतायें और अपवाद भी हैं ।
पृथ्वीचक्र के सर्वतोभद्र में भारत पर गुरु और मङ्गल के वेध हैं । अतः पूरे वर्ष का भारत हेतु मौसम सम्बन्धी प्रमुख फल है —
वातनाड़ी स्थित शुक्र के अशुभ होकर वृष में रहने के कारण तीव्रवायु द्वारा अशुभ फल;
दहनानाड़ी में बृहस्पति के कारण भारत पर वेध द्वारा अतिशय गर्मी;
सौम्यानाड़ी में मङ्गल के कारण भारत पर वेध द्वारा सौम्य फल ।
यह पूरे वर्ष का औसत फल है,किन्तु किसी मास वा गोचर चक्र में उक्त ग्रहों का काल आयुगा तो उनका उपरोक्त फल बढ़ जायगा ।
मेदिनी ज्योतिष का द्वितीय स्तर : देशचक्र (वर्षफल अर्थात् मेषप्रवेश)
भारत के किस भाग में कैसा फल मिलेगा इसके लिए देशचक्र अधिक उपयोगी है । “कुण्डली सॉफ्टवेयर” के मेदिनी फोल्डर में VidishaDeshaChart को चुनें और वर्ष में २०२३ भरें,अन्य कोई परिवर्तन न करें और “शो” बटन दबा दें,देशचक्र की वर्षकुण्डली बन जायगी ।
स्वगृही शुक्र का भारत का राशीश होना तथा भारत पर बृहस्पति और मङ्गल के सर्वतोभद्र वेध तो उपरोक्त जैसे ही हैं,किन्तु शुक्र धर्मभाव मं २ एवं ९ के स्वामी हैं जिस कारण मारकेश होने पर भी शुभ हैं परन्तु मारकेश वाला अशुभ फल भी मिलना ही है । मङ्गल एवं बृहस्पति अशुभ हैं । शुक्र,बृहस्पति और मङ्गल की सप्तनाड़ियाँ उपरोक्त जैसी ही हैं । अतः भारत पर प्रचण्ड वायु,तीव्र गर्मी का योग है । सौम्या नाड़ी का ग्रह अशुभ हो तो वर्षा का फल अशुभ ही होता है,जैसा कि मङ्गल का है ।
शुक्र के मारकेश वाले द्वितीय भाव में उत्तरी एवं मध्य गुजरात,दक्षिणी सिन्ध और दक्षिणी राजस्थान हैं जहाँ शुक्र का तीव्र वायु वाला फल मारकेश सहित मिलेगा ।
यह पूरे वर्ष के लिए पृथ्वीचक्र और देशचक्र का सम्मिलित फल है । अन्य ग्रहों के फल इतने प्रबल नहीं हैं क्योंकि वर्षकुण्डली में देश पर न तो उनका वेध है और न ही पूरा देश उनके भाव में है । पूर्वी भारत और समूचा बांग्लादेश मृत्युभाव में है किन्तु चण्डानाड़ी के बुध शुभ हैं औक्र सूर्य वातनाड़ी में हैं किन्तु द्वादशेष होकर अष्टम में विपरीत राजयोग बना रहे हैं । उधर बृहस्पति और राहु अशुभ है जिनका तीव्र वायु से सम्बन्ध नहीं है । राहु स्वयं किसी सप्तनाड़ी का स्वामी नहीं होता किन्तु अन्य ग्रहों के प्रभाव के कारण इस कुण्डली में मुख्यतः अशुभ जलकारक है और बृहस्पति अशुभ तापकारक है,अर्थात् लू । वात का अशुभ कोप मुख्यतः पश्चिमी भारत के उपरोक्त द्वितीय भाव पर है ।
इस वर्षकुण्डली में एक तथ्य दृष्टव्य है — सूर्य जब मृगशिरा में रहेंगे तो पाकिस्तान और “क” पर वेध रहेगा,कँराची और कच्छ में से कँराची पर अधिक क्योंकि वह पाकिस्तान में है । कारण यह है कि मृगशिरा नक्षत्र का वेध “प” और “क” के सिवा भारत और पाकिस्तान के अन्य किसी प्रान्त,मण्डल वा नगर पर नहीं है । नरपतिजयचर्या में नक्षत्रवेध का उल्लेख नहीं है किन्तु महाभारत में कर्ण ने नक्षत्रवेध का स्पष्ट उल्लेख किया ।
वर्षकुण्डली के सर्वतोभद्र में गुजरात के “ग” और “उ” पर राशीश शुक्र,सूर्य,बुध,राहु, शनि,चन्द्र,केतु मिलाकर कुल सात वेध हैं जबकि शेष दो ग्रहों के वेध भारत पर हैं । पाँच वेध हो तो तो पूर्ण फल मिलता है,वे सब अशुभ हों तो मृत्यु ।
BIPORJOY चक्रवात का पथ संलग्न चित्र में देखें,सूर्य जब मृगशिरा में थे तब चक्रवात सीधे कराँची की ओर बढ़ रहा था । किन्तु बाद में चक्रवात अचानक गुजरात की ओर मुड़ गया क्योंकि वर्षकुण्डली के अनुसार फल तो शुक्र के मारकेश वाले द्वितीय भाव को मिलना था जिसमें कराँची सहित दक्षिणी सिन्ध तो है ही,उत्तरी एवं मध्य गुजरात और दक्षिणी राजस्थान भी है । आगे स्पष्ट करेंगे कि चक्रवात कराँची को छोड़कर अचानक गुजरात की ओर क्यों मुड़ गया ।
BIPORJOY चक्रवात का पथ — इस लिंक पर क्लिक करें ।
मौसमवैज्ञानिकों द्वाराचक्रवात का पूर्वानुमान ?
हमारे मौसमवैज्ञानिकों और मीडिया का प्रचार है कि मौसमवैज्ञानिकों ने इस चक्रवात का पूर्वानुमान सही−सही लगा लिया था । यह सरासर झूठ है । India Meteorological Department (IMD) द्वारा रिलीज बुलेटिनों और अन्य साक्ष्यों के स्पष्ट सन्दर्भ देते हुए विकिपेडिया का यह लेख पढ़ें जिससे स्पष्ट हो जायगा कि १ जून २०२३ ई⋅ से पहले मौसमवैज्ञानिकों ने अरब सागर में किसी चक्रवात के आने की सम्भावना ढूँढने का प्रयास भी नहीं किया था क्योंकि मौसमवैज्ञानिकों के पास ऐसी कोई विधि है ही नहीं जो बिना उपग्रह चित्रों की सहायता से चक्रवात का पूर्वानुमान लगा सके ।
https://en.wikipedia.org/wiki/Cyclone_Biparjoy
कृत्रिम उपग्रहों के चित्रों द्वारा कुछ दिन पहले ही पूर्वानुमान लगाना सम्भव है,जबकि ज्योतिषीय पद्धति द्वारा करोड़ों वर्ष पहले से ही सारे पूर्वानुमान लगाये जा सकते हैं,बशर्ते India Meteorological Department की तरह बड़ी संख्या में सही तरीके से प्रशिक्षित ज्योतिषियों की टोली सही सॉफ्टवेयर द्वारा पूर्वानुमान लगाने का समुचित प्रयास करे ।
१ जून २०२३ ई⋅ वाले मौसमवैज्ञानिक IMD बुलेटिन में उल्लेख था=
“REGARDING ARABIAN SEA, MODELS LIKE ECMWF, NCUM, NCEP GFS & IMD GFS ARE INDICATING DEVELOPMENT OF DEPRESSION DURING 6TH-8TH JUNE. HOWEVER, THERE IS LARGE VARIATION AMONG VARIOUS MODELS WRT AREA OF GENESIS. CONSIDERING GUIDANCE FROM VARIOUS MODELS, PROBABILITY OF CYCLOGENESIS IS KEPT AS NIL FOR NEXT FIVE DAYS. ”
मौसमवैज्ञानिकों द्वारा झूठा प्रचार नहीं किया जाता,झूठ मीडिया बकती है । IMD बुलेटिन तो साफ कहती है कि उसके विभिन्न मॉडलों में चक्रवात की उत्पत्ति को लेकर LARGE VARIATION हैं जिस कारण चक्रवात कब और कहाँ उत्पन्न होगा इसपर IMD बुलेटिन कहती है कि अगले पाँच दिनों में अरब सागर में चक्रवात की सम्भावना नहीं है और उसके पश्चात चक्रवात की सम्भावना पर IMD बुलेटिन मौन है । IMD स्पष्ट कहती है कि चक्रवात के पूर्वानुमान का कोई विश्वसनीय मॉडल उसके पास नहीं है,उसके मॉडलों ECMWF, NCUM, NCEP GFS & IMD GFS में परस्पर तालमेल नहीं है और वे LARGE VARIATION वाले परस्पर भिन्न पूर्वानुमान देते हैं ।
६ जून २०२३ ई⋅ को IMD ने पहली बार इसे चक्रवात कहा,६ जून से पहले केवल depression कहा जा रहा था । ६ जून वाले IMD बुलेटिन में भी उल्लेख है कि विभिन्न मॉडलों में मतैक्य नहीं है किन्तु १ जून की तुलना में सुधार है,परन्तु केवल ३ दिनों की भविष्यवाणी विश्वसनीय हो सकती है,उसके बाद भविष्यवाणी पर भरोसा नहीं किया जा सकता =
“FORECAST CONFIDENCE:
TRACK 0 - 72 HR: MEDIUM
TRACK 72-120 HR: LOW
INTENSITY 0 - 72 HR: LOW
INTENSITY 72-120 HR: LOW//”
६ जून को उपग्रह चित्र द्वारा पहली बार हल्के नाभि (Eye) का प्रमाण मिला जिस कारण इसे चक्रवात माना गया । ७ जून को इसे पहली बार Category 2 वाला very severe cyclonic storm कहा गया । परन्तु ९ जून के IMD बुलेटिन में इसे कमजोर हो जाने की बात कही गयी । ११ जून के बुलेटिन में इसके अचानक प्रबल होकर Category 3 वाला extremely severe cyclonic storm कहा गया,१२ जून के बुलेटिन में भी प्रबल था जब तीव्रतम वायुगति १६५ किमी प्रति घण्टे की देखी गयी, किन्तु १३ जून को कुछ कमजोर पड़ा । १६ जून को कच्छ में जखउ बन्दरगाह के पास भूपतन (लैण्डफॉल) हुआ। IMD के निम्न मानचित्र में इस चक्रवात का पथ,वेग और समय है (रिपोर्ट में KT का अर्थ है knot ,एक knot है १⋅८५२ किमी प्रति घण्टा)=
15 June Noon IMD Bulletin BIPORJOY चक्रवात का पथ — इस लिंक पर क्लिक करें ।
वाञ्छित काल के सौरमास,विदशा,नक्षत्र आदि जानने की पद्धति
किसी वाञ्छित काल में मेदिनी के कौन−कौन से स्तर चल रहे हैं इसका ब्यौरा चाहते हैं तो कुण्डली सॉफ्टवेयर को रि−स्टार्ट करें एवं वाञ्छित पृथ्वीचक्र वा देशचक्र वा प्रदेश मण्डल नगर आदि का चुनें,दाहिनी ओर Desired Time में वाञ्छित काल टाइप करें और अन्य कोई परिवर्तन किये बिना SHOW बटन के बदले NOW बटन दबा दें,उस काल में “Varsha-phala Levels, Nakshatra and Sun-Degree” शीर्षक वाला छोटा फॉर्म खुलेगा जिसमें सभी स्तरों के LEVEL Number मिलेंगे,जैसे कि द्वितीय स्तर मासचक्र की संख्या,उस मास के तीसरे विदशा स्तर की संख्या,उसके चतुर्थ और पञ्चम स्तरों में समय नष्ट न करें,छठा स्तर सूर्य के तात्कालिक नक्षत्र की संख्या है और सातवाँ स्तर उक्त Desired Time में सूर्य का Sun-Degree अर्थात् स्पष्टसूर्य है ।
इस प्रकार स्तरों के विवरण को कॉपी करके नोटपैड में पेस्ट कर दें और कुण्डली सॉफ्टवेयर को रि−स्टार्ट करें एवं वाञ्छित स्तर की कुण्डली बनायें । कुण्डली सॉफ्टवेयर को रि−स्टार्ट करने के लिए सॉफ्टवेयर को बन्द करना आवश्यक नहीं है,ऊपर मेदिनी अथवा देशचक्र के कोम्बो में कुछ भी परिवर्तन माउस द्वारा करके पुनः वाञ्छित चक्र उनमें चुन लें,टेम्पपरी फाइलों से छुटकारा पाकर सॉफ्टवेयर सही मोड में आ जायगा ।
पृथ्वीचक्र और प्रदेश,मण्डल,नगर ⁄ ग्राम,गृह,खेत हर स्तर में भी मासफल आदि इसी तरह पता लगाकर बनायें ।
वाञ्छित मास,विदशा,नक्षत्र आदि की कुण्डली बनाने की पद्धति
“कुण्डली सॉफ्टवेयर” के मेदिनी फोल्डर में VidishaDeshaChart को चुनकर वर्ष में २०२३ भरें,नीचे MEDINI फ्रेम के लेवल वाले छोटे टेक्स्ट बाँक्स में डिफॉल्ट “१” के बदले “२” टाइप करें उसके नीचे solar month number वाले छोटे टेक्स्ट बाँक्स में सौरमास की संख्या “२” टाइप करके “शो” बटन दबा दें,द्वितीय सौरमास वाले देशशक्र की मासकुण्डली बन जायगी ।
लेवल वाले छोटे टेक्स्ट बाँक्स में “२” रहने दें और उसके नीचे solar month number वाले छोटे टेक्स्ट बाँक्स जो संख्या टाइप करेंगे उस सौरमास की कुण्डली बनेगी ।
इस प्रकार २०२३ ई⋅ में दूसरे सौरमास का देशचक्र बनायेंगे तो भारत के मानचित्र के नीचे उसका प्रवेशकाल मिलेगा १५ मई २०२३,१५:३९:२५⋅९ बजे ।
तीसरे सौरमास का प्रवेशकाल मिलेगा १६ जून २०२३,०१:४४:०५⋅७ बजे ।
देशचक्र में मासफल : राशिप्रवेशचक्र (संक्रान्तिचक्र)
दूसरे सौरमास का अन्त अर्थात् तीसरे सौरमास का प्रवेशकाल था १६ जून २०२३,०१:४४:०५⋅७ बजे,जबकि भूपतन उससे सात घण्टे पहले ही हो चुका था । अतः इस चक्रवात का मुख्य फल तीसरे मासचक्र में दिखेगा,किन्तु आरम्भिक फल दूसरे मासचक्र के अन्तिम खण्ड में दिखेगा ।
द्वितीय मासफल
द्वितीय मासप्रवेशचक्र अधिकांशतः प्रथम मासप्रवेश अर्थात् वर्षप्रवेश जैसा ही है,अन्तर निम्न तथ्यों में है ।
लग्न वर्षप्रवेष जैसा ही है किन्तु गुजरात आदि के द्वितीय भाव के ईंश शुक्र नवम की बजाय दशम भाव में हैं जहाँ मङ्गल भी हैं किन्तु दोनों की राशियों में अन्तर है,और चन्द्रमा आयेश होकर पञ्चम में थे जो अब आयेश होकर सप्तम में हैं ।
दोनों तथ्य अत्यन्त महत्वपूर्ण हैं,क्योंकि देशचक्र के मानचित्र में गोल राशिचक्र पर माउस टहलायेंगे तो माउसकाल का समय मानचित्र में नीचे दाहिने दिखेगा जिसके अनुसार जब माउस द्वितीय सौरमास के अन्तिम खण्ड में मीनराशि में पँहुचेगा तब वहाँ भाव सप्तम है जिसके स्वामी चन्द्रमा आयेश होने के कारण अशुभ तो हैं ही,पिछले मासचक्र में शुभ पञ्चम की बजाय मारक सप्तम में आ गये हैं । चन्द्रमा सौम्यनाड़ी के कारण मध्यम जलकारक हैं ।
मीनराशि के स्वामी बुहस्पति ४,७ के स्वामी होने के कारण अत्यधिक अशुभ हैं,मृत्युभाव अष्टम में मेषमें बुध और राहु से युक्त हैं बुध और बृहस्पति दोनों वातनाड़ी में हैं जिस कारण राहु पर भी वातनाड़ी का प्रभाव है । राहु षष्ठेश होकर अशुभ हैं,बृहस्पति सर्वाधिक अशुभ हैं,और बुध १ एवं १० के ईश होने के कारण अष्टम हेतु शुभ हैं किन्तु अन्य भावों के लिए अशुभ हैं — विशेषतया उन भावों के लिए जहाँ शत्रुदृष्टि है । राशिचक्र में मीनारम्भ का माउसकाल १३ जून लगभग १ बजे दोपहर बताता है जब चक्रवात का केन्द्र तो दूर था किन्तु गुजरात के पश्चिमी क्षेत्रों में तीव्र वायु और वर्षा का कोप आरम्भ हुआ । १३ जून को रात लगभग ८ बजे माउसकाल सप्तम भाव का आरम्भ बताता है जब बृहस्पति का अपने अधीनस्थ सप्तम पर दुष्प्रभाव में तीव्र वृद्धि हुई । राहु मीन में अतिशत्रुगुही होकर केवल अत्यधिक अशुभ फल दे रहे थे,और मीनराशि को बुध भी शत्रुता के कारण केवल अशुभ फल ही दे रहे थे,मीन से पहले बुध और राहु का फल अशुभ नहीं था । मध्यरात्रि तक चन्द्रमा के मुख्यफल का समय आया जो बहुत ही अशुभ थे ।
बृहस्पति और बुध की पूर्ण दृष्टि कच्छ की उत्तरी सीमा पर थी और राहु की पूर्ण दृष्टि उससे कुछ ही दक्षिण थी जहाँ राशीश शुक्र के अतिशत्रु होकर अशुभ केतु कुण्डली में बैठे थे ।
किन्तु गुजरात के राशीश शुक्र का मीन के आरम्भ पर २२ कला मित्रदृष्टि थी जो मीन के अन्त पर घटकर ८ कला हो गयी । अतः माउसकाल मीन में जैसे−जैसे आगे बढ़ता है वैसे−वैसे गुजरात के राशीश शुक्र की गुजरात पर शुभ दृष्टि तेजी से घटती है,२२ से ८ तक । इस कारण अशुभ प्रभाव वाले ग्रहों का प्रभाव तेजी से बढ़ता है जिसे शुक्र नहीं रोक पाते । फलतः तीव्र वात का प्रचण्ड योग बढ़ता है जो मीन के अन्त १६ जून रात्रि ०१:४४:०५⋅७ बजे तक सर्वाधिक हो जाता है । तबतक चक्रवात का केन्द्र कच्छ के अन्दर जा चुका था ।
द्वितीय मास की अन्तिम विदशा
एक सौरमास में बारह विदशा होते हैं,एक विदशा ढाई सौरदिन अर्थात् सूर्य के ढाई अंशों के तुल्य होता है । १६ जून २०२३,०१:४४:०५⋅७ बजे को समाप्त होने वाली द्वितीय सौरमास की अन्तिम विदशा का फल जानने के लिए कुण्डली सॉफ्टवेयर के निचले MEDINI फ्रेम में सेवल ३ भरें,सौरमास २ और विदशा १२ भरकर SHOW बटन दबायें,१३ जून १०:३४:४५⋅६ बजे से मासान्त १६ जून २०२३,०१:४४:०५⋅७ तक वाली विदशा कुण्डली बनेगी । ।
इसमें गुजरात के स्वामी शुक्र ३ और १० के स्वामी होने के कारण अत्यधिक अशुभ हैं,हानिभाव १२ में बैठकर केवल हानि ही दे रहे हैं,और शुक्र चन्द्रमा की राशि में अतिशत्रुगृही हैं जिस कारण चन्द्रमा भी केवल अशुभ फल ही गुजरात को दे रहे हैं जहाँ उत्तर की ओर चन्द्रमा की लगभग पूर्ण दृष्टि है और दक्षिणी गुजरात पर कुछ अल्प दृष्टि है । मङ्गल भी बहुत अधिक शत्रुदृष्टि रखते हैं जो चन्द्रमा के वश में भी हैं । सर्वाधिक फल राशीश शुक्र का है जो जलनाड़ी में अत्यधिक अशुभ हैं,अतः विनाशकारी जल देते हैं । वातनाड़ी के ग्रहों का कोप तुलना में उतना नहीं है । वैसे भी लैण्डफॉल के पश्चात वायुवेग बहुत घट जाता है । परन्तु वातनाड़ी वाले बुध शुक्र की राशि में होने के कारण वातप्रकोप शुक्र के प्रभावक्षेत्र को दे ही रहे हैं । २ और ११ के सवामी होने के कारण बुध वायुकोप द्वारा मारक हैं । सूर्य भी शुक्र की राशि में हैं और सूर्यराशि में वातकारक बृहस्पति हैं । कुल मिलाकर वात से क्षति का योग तो है,किन्तु जल से क्षति अत्यधिक है ।
इसपर माउस टहलायेंगे तो लैण्डफॉल का काल विदशाचक्र के मृत्युभाव में मिलेगा ।
माउसकाल द्वारा ढाई दिनों में वर्षा एवं वायुगति का क्षेत्रानुसार और समयानुसार आँकड़ा भी मिलेगा,किन्तु IMD के आँकड़े उपलब्ध नहीं हैं जिस कारण तुलनात्मक अध्ययन सम्भव नहीं है ।
तृतीय मासफल
तृतीय सौरमास हेतु स्तर २ और मास ३ भरकर SHOW बटन दबायें ।
गुजरात मृत्यु के अष्टम में,उससे उत्तर का भाव भी अशुभ । गुजरात के राशीश शुक्र ३,८ के ईश,अतः अत्यधिक अशुभ । वहीं नीच के मङ्गल भी । उन दोनों के राशीश चन्द्रमा चण्डा नाड़ी में उच्चस्थ और मारकेश भाव में — शुक्र और चन्द्रमा में परस्पर स्थान परिवर्तन योग जिस कारण गुजरात पर प्रचण्ड वायुकारक चन्द्रमास का पूर्ण और उच्चस्थ होने के कारण प्रबल प्रकोप । साथ में जलनाड़ी के शुक्र अशुभ होकर दुष्टवृष्टि का योग बना रहे हैं । नीच मङ्गल की अमृतनाड़ी का अतिशय जलयोग भी शुक्र−चन्द्र ने ले लिया । बुध भी अत्यधिक अशुभ हैं और वातनाड़ी में बैठकर शुक्र की राशि में रहने के कारण गुजरात पर प्रभावी है — अशुभ वायुकोप ।
देशचक्र में गोचर कुण्डलियों की जाँच
“वाञ्छित काल के सौरमास,विदशा,नक्षत्र आदि जानने की पद्धति” अनुच्छेद में ऊपर Desired Time में सूर्य का Sun-Degree जानने की विधि बतायी गयी;इसके द्वारा प्राप्त वाञ्छित काल का स्पष्टसूर्य बड़े टेक्स्ट बॉक्स में भर दे जिसका सामान्य उपयोग टिप्पणियों के लिए होता है । किन्तु मेदिनी का गोचर बनाते समय उसमें केवल Sun-Degree की संख्या पेस्ट करें,और कुछ भी उसमें नहीं रहना चाहिए । तब नीचे स्तर ७ भरकर SHOW दबा दें,इष्टकालीन गोचर कुण्डली मानचित्र पर बनेगी ।
जिसमें मानचित्र के निचले भाग में कुण्डली का समय भी दिखेगा । स्पष्टसूर्य में एक अंश परिवर्तन औसतन एक दिन एवं २१ मिनट के बराबर होता है,औसतन १४६१ मिनट । इस प्रकार स्पष्टसूर्य में परिवर्तन करते हुए विभिन्न कालों की गोचर कुण्डली बना सकते हैं । उदाहरणार्थ, स्पष्टसूर्य में लगभग ढाई कला परिवर्तन करते हुए लगभग एक घण्टे के अन्तराल पर गोचर कुण्डली बनाते हुए चक्रवात एवं अन्य घटनाओं की “प्रगति रिपोर्ट” देख सकते हैं ।