Bhaavas From All Bhaavas

संसार के सभी क्षेत्रों में कुण्डली के बारह भाव ही होते हैं और उनके अर्थ भी लगभग समान ही हैं, जिस कारण अकादमीशियनों का भी कहना है कि फलित ज्योतिष का कोई एक ही मूल स्रोत रहा होगा | किन्तु नस्लवाद से पीड़ित म्लेच्छों की जिद है कि कोई भी महान खोज ग्रीस से बाहर हो ही नहीं सकती, यद्यपि ग्रीस में फलित (और गणित) ज्योतिष मेसोपोटामिया से चाल्दीयन लोग ले गए थे इसके दस्तावेजी सबूत क्यूनीफोर्म मिटटी के टेबलेट में प्राप्त हो चुके हैं | वे सबूत सुकरात के काल से पहले के नहीं हैं | उससे पहले ग्रीस में ज्योतिष था ही नहीं | किन्तु कुण्डली के बारह भावों का ज्योतिष में जो अर्थ है वह केवल भारतीय वैदिक दर्शन से ही मेल खाता है जो इस बात का प्रमाण है कि यह विद्या भारत से ही आरम्भ हुई थी | इस लेख में कुछ ठोस प्रमाण दिए गए हैं :—
http://vedicastrology.wikidot.com/origin-and-meaning-of-horoscopic-houses
कुण्डली के किसे एक भाव को लग्न मानकर अन्य सभी भावों द्वारा उस एक भाव के फल को बारीकी से जांचा जा सकता है | उदाहरण के तौर पर एकादश भाव पर यह लेख है :—

BPHS (Brihat Parashara Hora Shastra) states that any Bhāva should be assumed to be Lagna and then results of all other houses should be seen accordingly. But such excercizes should be based on classics and not whimsical. Here are examples.

11H (11th House or Bhāva)

(1)
11H is 7th from 5H, hence 11H represents "son's wife &c" = पुत्रजायादि. But 11H is Trikona (5th) from 7H too and is therefore part of Kāma-Trikona and represents "Intelligence needed to fulfill Kāma" in general and is conducive for Kāma of the Native.

(2)
a-
11H is 12th from 12H, i.e., Hāni of Hāni = worldly Lābh, but also Loss of Moksha, which means worldly gains are impediments for spiritual gains.
b-
11H is 10th from 2H, both 2H and 10H are paert of Artha-Trikona, hence 11H is conducive for economic gains in general and shows the ways of necessary Karma needed for gaining wealth in particular.
c-
11H is 2nd from 10H, hence 11H is conducive for economic gains in general and Dhana-bhāva for Karma, i.e., 11H gives economic gains of Karma.

(3)
11H is 8th from 4H and 4th from 8H, which means it shows the spiritual path (8H) for attaining real Sukha (4H) and real wisdom(4H), and is also the vehicle and basis of spiritual knowledge. That is why BPHS relates 11H to Teerthātana (cf. Bhāvādheesha-phala-adhyāya's 11L).

(4)
11H is 3rd from 9H and 9th from 3H, which means 11H is Parākrama needed for attaining Vedic Dharma opens the door to Bhāgya, and 11H is also Fortune for Parākrama, i.e., gives fruits of Parākrama according to good or bad nature of 11H and its lord.

The magnitude and qualitative nature of these fruits depend on Pada charts.

7H (7th House or Bhāva) "काम" का ज्योतिषीय विश्लेषण :—

उपरोक्त पद्धति द्वारा सप्तम, अर्थात काम, के भाव पर प्रस्तुत लेख है |
सप्तम भाव लग्न का सम्मुख अर्थात पूरक भाव है | अतः संसार में आना अर्थात देह का प्रकट होना लग्न है तो उसका कारण है सम्मुख में काम का भाव, और काम से मुक्ति मिले तो संसार में आने से भी मुक्ति मिलेगी | देह का काम से सीधा सम्बन्ध है, काम की पूर्ति हेतु ही जीव देह धारण करता है | लग्न का सम्बन्ध है देह और उसके गुण-अवगुण से, सांसारिक चरित्र एवं प्रकट स्वभाव से, अतः काम की पूर्ति का भी इन दैहिक लक्षणों से सम्बन्ध है | संसार में आपका प्रकट चरित्र और प्रकट स्वभाव कैसा है, इसपर काम की पूर्ति या आपूर्ति निर्भर करती है | दोनों भावों का एक दूसरे पर पूर्ण दृष्टि है |
काम (सप्तम) से दूसरा भाव है अष्टम जो मृत्यु, दैहिक जीवन में कमजोरियों अर्थात छिद्र एवं गुप्त ज्ञान का भाव है , एवं धनभाव का सम्मुख होने के कारण ऋण का भाव है | अष्टम भाव काम का धनभाव है, अत: अष्टम भाव शुभ रहे तो काम की पूर्ति की सम्भावना में वृद्धि होती है, काम हेतु जो वाक्-पटुता चाहिए वह मिलती है, काम की पूर्ति में कुटुम्ब से सहयोग मिलता है, अथवा काम के सम्बन्ध वाला नया कुटुम्ब प्राप्त होता है |
काम से तीसरा भाव है धर्म का नवम भाव | अत: धर्म भाव शुभ रहे तो काम हेतु पराक्रम की योग्यता बढ़ती है, इस कार्य में भाइयों से सहयोग मिलता है | किन्तु काम का स्वामी धर्म भाव में रहे तो धर्म को काम नष्ट करता है, जबकि कामभाव में धर्मेश रहे तो काम पर धर्म का नियन्त्रण बढ़ता है |
काम का चतुर्थ है कर्म का दशम भाव | अतः दशम शुभ रहे तो काम के क्षेत्र में आत्मीय सम्बन्ध बनता है, हार्दिक प्रेम का सम्बन्ध बनता है, जो मेलापक अच्छा होने पर दृढ़ हो जाता है | दशम शुभ हो तो दाम्पत्य जीवन में मातृपक्ष से सहयोग मिलता है और घर का सुख भी मिलता है |
एकादश भाव शुभ हो तो काम की बुद्धि तीव्र होती है क्योंकि वह काम से पञ्चम है |
द्वादश शुभ हो तो काम के मार्ग में शत्रु और रोग बाधा नहीं बनते |
लग्न शुभ हो तो काम की पूर्ति में देह और स्वभाव सहयोग करता है |
धनभाव शुभ हो तो काम की पूर्ति में मृत्यु या दुर्घटना और गम्भीर रोग आदि बाधक नहीं बनते |
तीसरा भाव शुभ हो तो काम में भाग्य साथ देता है, वह काम का भाग्यभाव है |
चौथा भाव शुभ हो तो काम की पूर्ति में जो आवश्यक कर्म चाहिए वे बेखटके होने लगते हैं |
पञ्चम भाव शुभ हो तो काम हेतु जो आय चाहिए उसमें बाधा दूर होती है |
षष्ठ भाव शुभ हो तो काम के बाधक दूर होते हैं |
उपरोक्त फल केवल काम के सन्दर्भ में सभी भावों का फल है | उन भावों का लग्न के या अन्य भावों के सन्दर्भों में जो फल हैं उनका समावेश नहीं किया गया है | भावेशों के फलों का भी समावेश नहीं किया गया है |
आरूढ़ पदों और कारकांश एवं षोडश वर्ग आदि कुण्डलियों में भी यह प्रक्रिया फलों में सूक्ष्मता लाने में सहायक होगी |
उपरोक्त फल में एक विशेषता है — काम त्रिकोण में सप्तम के साथ एकादश तथा तृतीय भाव होते हैं | अतः काम की पूर्ति में समस्त बारह भावों में सर्वाधिक शुभ यही तीन भाव होने चाहिए — पराक्रम एवं आमदनी दुरुस्त रहने से ही काम की पूर्ति होती है |
सप्तम भाव को कुछ लोग धर्मपत्नी का भाव समझ लेते हैं | सप्तम भाव काम-पत्नी का भाव है, धर्म-पत्नी का भाव नवम है जहाँ से यज्ञादि धर्म के विषय देखे जाते हैं | बिना पत्नी वाले को यज्ञ का अधिकार नहीं होता | किन्तु धर्मपत्नी से भी काम का सम्बन्ध सप्तम भाव ही बताता है | इस जटिलता को आधुनिक लोग समझ नहीं पाते क्योंकि वैदिक विवाह का अर्थ लोग भूल चुके हैं , जिसमें पत्नी काम की पूर्ति का साधन नहीं बल्कि धर्म की पूर्ति का साधन है , अतः "धर्मपत्नी" कहलाती है, जिसपर समूचा गृहस्थ-धर्म टिका होता है |
अब दूसरे दृष्टिकोण से देखें | लग्न से सप्तम काम है, अतः पूर्ण दृष्टि का सम्बन्ध है | एक दुसरे के पूरक हैं |
द्वितीय भाव से षष्ठ है काम, अतः धन का शत्रु है — जो काम के पीछे दौड़ते हैं उनके धन का नाश होता है और कुटुम्ब से सम्बन्ध बिगड़ते हैं |
तृतीय भाव से पञ्चम है काम, अतः पराक्रम का अक्ल काम देता है, किस प्रकार का और कौन सा पराक्रम करें यह अक्ल काम की वासना से प्राप्त होती है |
चतुर्थ से चतुर्थ है काम, अतः काम तो घर का भी घर है, गृहस्थ आश्रम का आधार है, भूमि-भवन एवं मैत्री आदि हार्दिक सम्बन्धों को निर्धारित करने वाली नींव है |
पञ्चम से तीसरा है काम, अतः बुद्धि और सांसारिक विद्याओं का पराक्रम-भाव है काम | कामवासना न हो तो लोग सांसारिक विद्याओं के लिए पराक्रम करना छोड़ दें !
षष्ठ से दूसरा है काम, अतः कामभाव शुभ हो तो शत्रु एवं रोगों के विरुद्ध धन आदि द्वारा रक्षा करता है, कामभाव अशुभ हो तो शत्रु एवं रोग से रक्षा हेतु धन आदि साधनों का नाश होता है |
अष्टम से द्वादश है काम, अतः मोक्ष-त्रिकोण के गुप्तज्ञान का नाश काम करता है, एवं अष्टम अशुभ हो तो काम हेतु भी छिद्र या कमजोरियों में वृद्धि होती है |
नवम से एकादश है काम, अतः धर्म हेतु यह लाभ का भाव है, काम शुभ हो तो धर्म में सहायक है |
दशम से दशम है काम, अतः काम भाव शुभ हो तो कर्मशीलता बढ़ती है, पितृपक्ष से सहयोग मिलता है | काम से निराश लोग कर्म ठीक से नहीं कर पाते |
एकादश से नवम है काम, आय या लाभ का धर्म है काम, अर्थात सप्तम भाव के बली होने से लाभ में वृद्धि हेतु धार्मिक कार्य सम्पन्न होते हैं |
द्वादश से अष्टम है काम, मोक्ष की मृत्यु है काम !
-VJ

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