एलोपैथी बनाम आयुर्वेद
विश्वयुद्ध−२ के पश्चात World Medical Association (WMA) नाम से डॉक्टरों की स्वयंसेवी संस्था की स्थापना लन्दन में हुई जिसके संस्थापक सदस्यों में १९२८ ई⋅ में स्थापित भारतीय डॉक्टरों की निजी स्वयंसेवी संस्था IMA भी थी ।
WHO से WMA ने सम्बन्ध बनाये रखने के सदैव प्रयास किये और अपने मुख्यालय को उसी कारण से WHO मुख्यालय के निकट ले गया ताकि WHO पर प्रभाव डाला जा सके । WHO और WMA तथा भारत की IMA ने आधुनिकीकरण की आड़ में प्राचीन चिकित्सा पद्धतियों के विरुद्ध जेहाद छेड़ रखा है,किन्तु अनेक डॉक्टरों द्वारा धोखाधड़ी,लूट−खसोट,रसायनिक एवं जैविक हथियारों पर अवैध अनुसन्धान जैसी गतिविधियों पर ये संस्थायें या तो चुप रहती हैं या कागजी बयान देकर भूल जाती हैं । ताजा उदाहरण है चीन द्वारा कोरोना महामारी फैलाने के मुद्दे पर इन संस्थाओं की चुप्पी । कुछ साक्ष्य तो ऐसे हैं कि चीन के कदाचार को ढाँपने का प्रयास WHO और उनके उक्त मित्र−संस्थाओं ने किया ।
जहाँ तक नैतिकता का प्रश्न है,WMA की सर्वाधिक घिनौनी हरकत थी अक्टू⋅ २०१८ में उसके नये अध्यक्ष Leonid Eidelman के भाषण का अधिकांश भाग कनाडियन CMA के तत्कालीन अध्यक्ष Chris Simpson के २०१४ ई⋅ वाले भाषण की शब्दशः चोरी ; शेष अंश भी कई वेबसाइटों से बिना आभार व्यक्त किये और बिना मूल लेखक का नाम बताये चुराये गये थे । अक्टू⋅ २०१८ में WMA की जनरल असेम्बली में CMA ने प्रतिवाद किया तो WMA और उसमें भारत की IMA ने अनसुना कर दिया जिसपर CMA ने त्यागपत्र देकर WMA का बहिष्कार कर दिया । बाद में हंगामा बढ़ा और मीडिया में प्रचार हुआ तो WMA ने स्वीकारा की चोरी की गयी थी किन्तु अपने अध्यक्ष को निर्दोष बताते हुए कहा कि दूसरे लोगों ने भाषण तैयार किया था!यह तो ऐसा ही हुआ कि कोरोना वायरस बनाने में कोई मेडिकल संस्था पकड़ाये तो वहाँ के दरबान पर आरोप मढ़कर डॉक्टरों को बरी कर दे!
वह चोर भारत के IMA का भी सरगना है क्योंकि IMA उस WMA की सदस्य है । IMA ने अपने सरगना से लेकर अपने देसी सदस्यों की अनैतिक हरकतों पर कभी कोई कार्यवाई क्यों नहीं की?बाबा रामदेव को इन तथ्यों की सूचना दें ताकि वे अपने पर IMA द्वारा मुकदमे में प्रतिकार कर सकें । IMA एक निजी संस्था है जिसे सोसाइटीज एक्ट के सिवा कोई मान्यता नहीं है किन्तु बतियाती ऐसे है जैसे भारत के जन−गण−मन की अधिनायक हो ।
आधुनिक मेडिकल विज्ञान में लाखों मेधावी और ईमानदार डॉक्टर कार्यरत हैं । आयुर्वेद में मेधावी लोग जायें ऐसी व्यवस्था नहीं है,और न ही एलोपैथी के तुल्य संसाधन दिये जाते हैं ।
आधुनिक मेडिकल विज्ञान और एलोपैथी में अन्तर लोग समझ नहीं पाते । एलोपैथी अवैज्ञानिक दर्शन पर आधारित सिद्धान्त है तथा आयुर्वेद की ही विकृति है । मध्ययुगीन काला जादू,अलकेमी,आदि अवैज्ञानिक परम्पराओं से एलोपैथी का सम्बन्ध था जिसे तोड़ने में समय लगा,किन्तु बाह्य लक्षणों पर बल देना बरकरार रहा । आधुनिक युग की समस्त वैज्ञानिक खोजों को सुनियोजित तरीके से ईसाई देशों के एलोपैथ डॉक्टरों ने एलोपैथी के अन्तर्गत सम्मिलित करके ऐसा वातावरण बनाया जिससे प्रतीत हो कि एलोपैथी के कारण ही मेडिकल विज्ञान का विकास सम्भव हुआ,और यह बात छुपाई गयी कि आधुनिक मेडिकल विज्ञान के विकास में प्राचीन पद्धतियों,उपचार−विधियों और औषधियों एवं उनके प्रयोगों की बेशर्मी से बिना आभार व्यक्त किये चोरी की जाती रही और जिन प्राचीन चिकित्सा प्रणालियों से चोरी की गयी उनको बदनाम भी किया जाता रहा एवं सुनियोजित तरीके से संसाधनों से वञ्चित करके उनको मिटाने का षडयन्त्र चलता रहा ।
एलोपैथी शब्द का आविष्कार होमियोपैथी के जनक Samuel Hahnemann ने १८१० ई⋅ में व्यंग्य में किया था,उससे पहले एलोपैथी शब्द का उल्लेख कहीं नहीं मिलता । एलोपैथी शब्द का अर्थ बताया गया — blood, phlegm, yellow bile, black bile नाम के चार humours में परस्पर असन्तुलन के कारण रोगों की उत्पत्ति का सिद्धान्त ।
yellow bile तथा black bile आयुर्वेद के “पित्त” से चुराये गये, phlegm आयुर्वेद के “कफ” की चोरी है,आयुर्वेद के “वात” को न समझ पाने के कारण उसके बदले blood को रखा किन्तु वात−पित्त−कफ में परस्पर असन्तुलन को रोगों की उत्पत्ति का कारण मानने वाला सिद्धान्त आयुर्वेद से ही एलोपैथी ने चुराया । परन्तु आयुर्वेद की समग्र सोच का यूरोप को ज्ञान नहीं था,चार humours में परस्पर असन्तुलन से जनित रोगों का उपचार उन रोगों के विरोधी तत्वों को शरीर में बलपूर्वक ठूँसकर किया जाय तो इस पद्धति को एलोपैथी कहा गया । रोगी दवा न ले तो बलपूर्वक ठूँसों,ठूँसने न दे तो सूई भोंक दो । दवा अथवा सूई में बुराई नहीं है,बुराई है इस सोच में कि रोग के वास्तविक कारणों और उपचारों पर सम्यक् अनुसन्धान किये बिना केवल विरोधी−तत्व को दवा मानने की गलती में । उदाहरणस्वरूप तापमान बढ़ने को बुखार माना गया,जबकि तापमान बढ़ना बुखार का परिणाम है,कारण नहीं । अतः जिस किसी रसायन से तापमान घटे उसे बुखार की दवा कही गयी । कारण दबकर दूसरा मार्ग पकड़ लेता है ।
इस अवैज्ञानिक पद्धति में पिछले डेढ़ सौ वर्षों के दौरान लाखों वैज्ञानिकों ने बहुत से सुधार किये हैं,किन्तु उन सुधारों को भी एलोपैथी कहा जाता रहा जो कि विशुद्ध जालसाजी है,क्योंकि मेडिकल विज्ञान की अधिकांश खोजें एलोपैथी की विचारधारा से बिल्कुल भी मेल नहीं खाती । आज के एलोपैथ डॉक्टर आयुर्वेद के वात−पित्त−कफ का मजाक उड़ाते हैं किन्तु एलोपैथ के चार humours का मजाक नहीं उड़ाते और उन humours से बिल्कुल असम्बद्ध आधुनिक विज्ञान की खोजों को एलोपैथी कहते हैं जो धोखाधड़ी है । जिनका अन्तर्राष्ट्रीय अध्यक्ष ही चोर हो उनसे आशा ही क्या?अधिकांश डॉक्टर इस धोखाधड़ी से अनजान हैं,केवल यूरोपवादी ईसाई डॉक्टरों का संगठित गिरोह इस षडयन्त्र को चालाकी से सारे डॉक्टरों पर थोपता है और पढ़ाता है कि एलोपैथी ही आधुनिक मेडिकल विज्ञान है ।
अमरीका में डॉक्टरों द्वारा ४६% रोगियों को ऐसी मेडिकल सेवायें दी गयी जो डॉक्टरों की संस्थाओं द्वारा ही अनुशंसित नहीं थी,और ११% रोगियों को घातक सेवायें दी गयी,केवल ४३% रोगियों को ही अनुमोदित उपचार मिला (“about 46 percent of patients did not receive recommended care, while about 11 percent of participants received care that was not recommended and was potentially harmful”) — पढ़ें २०११ ई⋅ की इस आधिकारिक रिपोर्ट में =
https://www.scientificamerican.com/article/demand-better-health-care-book/
इससे भी आश्चर्य की बात यह है कि उक्त आलेख में कहा गया है कि अमरीकी सरकार द्वारा गठित मेडिकल विशेषज्ञों की कमिटी ने जब प्रतिवेदन प्रस्तुत किया कि कमर के पिछले भाग में दर्द के उपचार में बड़ी संख्या में डॉक्टरों द्वारा गलत तरीकों का उपयोग किया जाता है तो अमरीका के डॉक्टरों ने मिलकर सरकार पर दवाब डालकर इस तरह के सर्वेक्षणों और अनुसन्धानों पर सरकारी फण्डिंग बन्द करा दीी =
“Disgruntled orthopedic surgeons and neurosurgeons reacted vigorously to the researchers' conclusion that not enough scientific evidence exists to support commonly performed back operations. The surgeons joined with Congressional critics of the Clinton health plan to attack federal funding for such research and for the agency that sponsored it. Consequently, the Agency for Healthcare Policy and Research had its budget for evaluative research slashed drastically.”
इसका अर्थ यह है कि अमरीका में अच्छे डॉक्टरों की नहीं चली,गलत तरीकों द्वारा रोगियों को लूटने और मारने वाले चाण्डालों की विजय हुई!अमरीकी डॉक्टरों का WMA पर वर्चस्व है जिसकी चमचई IMA करता है और अपने अन्तर्राष्ट्रीय अध्यक्ष की चोरी पर मौन रहता है ।
लिखने को तो बहुत कुछ है,किन्तु फिलहाल इतना ही बाबा रामदेव को भेजें । बाबा रामदेव की संस्था अच्छी है या नहीं,यह प्रस्तुत लेख का विषय नहीं है । डॉक्टरों पर उनके व्यंग्य को भी मैं उचित नहीं मानता क्योंकि बहुत से अच्छे डॉक्टर भी हैं,जैसा कि अन्य समुदायों में भी है । किन्तु IMA के पक्षपातपूर्ण व्यवहार का डटकर विरोध होना चाहिये जो बाबा रामदेव के बयान पर मुकदमा ठोकती है किन्तु लाखों डॉक्टरों द्वारा ठगी, जालसाजी, चोरी, हत्या,आदि पर चुप रहती है ।
एलोपैथी के समूचे दर्शन और विकास का वर्णन प्रस्तुत लेख का विषय नहीं है,यहाँ मैंने केवल “एलोपैथी” शब्द की उत्पत्ति और प्रचलित अर्थ का वर्णन किया है । “एलोपैथी” जादू−टोना की श्रेणी में आता है यह न्यायालय में सिद्ध किया जा सकता है,आधुनिक मेडिकल विज्ञान को “एलोपैथी” वालों ने जालसाजी द्वारा “एलोपैथी” घोषित कर रखा है जिसका विरोध होना चाहिये । उदाहरणार्थ,वैक्सीन का दर्शन आयुर्वेद के “विषस्य विषमौषधम्” पर आधारित है जिसका उपयोग होमियोपैथी में भी होता है किन्तु एलोपैथी के मूल दर्शन का ठीक विपरीत यह सिद्धान्त है । जेनेटिक्स का समूचा विज्ञान ही एलोपैथी के मूल दर्शन से रत्ती भर भी सम्बन्ध नहीं रखता । आधुनिक मेडिकल विज्ञान का एलोपैथी के मूल Four Humours दर्शन से कोई सम्बन्ध नहीं है किन्तु आयुर्वेद की सैकड़ों विधियों एवं उपचारों से आधुनिक मेडिकल विज्ञान का घनिष्ठ सम्बन्ध न्यायालय में भी सिद्ध किया जा सकता है,बशर्ते न्यायालय केवल एलोपैथों के बयानों को ही एकमात्र सबूत न माने और अच्छे वकीलों द्वारा तथ्यों को प्रस्तुत किया जाय ।
समस्त प्राचीन एवं नवीन पद्धतियों से जनकल्याण हेतु लाभ उठाया जाय,विभिन्न चिकित्सा पद्धतियों में परस्पर मतभेद न रहे,गलत विधियों को सुधारा जाय अथवा त्यागा जाय,दुष्ट चिकित्सकों पर चिकित्सकों की संस्था ही कार्यवाई करे — इस बात की आशा उन संस्थाओं से नहीं की जा सकती जिनका अध्यक्ष ही चोर हो । तब सुधार का पथ क्या हो इसपर विमर्श होना चाहिये,जिसकी पहल लेने के संसाधन बाबा रामदेव के पास है । किन्तु बाबा रामदेव अपनी क्षमता का दुरुपयोग आर्यसमाज से बाहर के सनातनियों को अपमानित करने में करेंगे तो एलोपैथी को लाभ पँहुचेगा ।
एलोपैथी बनाम आयुर्वेद एक बृहद् विषय है,प्रस्तुत आलेख में केवल मूल बिन्दुओं पर प्रकाश डाला गया है । उपरोक्त समस्त सूचनाओं के प्रमाण उपलब्ध हैं ।
“एलोपैथी बनाम आयुर्वेद” :— भाग−२
दिल्ली मेडिकल एसोसिएशन DMA ने हाई कोर्ट में एलोपैथी के विरुद्ध बाबा रामदेव के बयान पर याचिका दायर की । न्यायालय ने कहा कि रामदेव का बयान अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता के अन्तर्गत आता है,ऐलोपैथी से कई रोगी ठीक हो जाते हैं और कई रोगी ठीक नहीं भी होते,जो ठीक नहीं होते उनपर भी विचार व्यक्त करने का लोगों को अधिकार है । पढ़ें —
https: //indianexpress. com/article/cities/delhi/ramdevs-statements-on-allopathy-fall-within-parameters-of-freedom-of-speech-delhi-hc-7342955/
IMA की शाखा ही DMA है । आधुनिक मेडिकल साइन्स को “एलोपैथी” कहने की मूर्खता IMA करती है और न्यायालय में ऐसा लिखकर देती है जिसपर भरोसा करके कई बार न्यायालय भी कई बार आधुनिक मेडिकल साइन्स को “एलोपैथी” कह देती है । इसमें न्यायालय का कोई दोष नहीं है,विशेषज्ञ ही न्यायालय को गुमराह करते हैं ।
आज एक वरिष्ठ डॉक्टर से मैंने कहा कि “एलोपैथी” शब्द अवैज्ञानिक है तो उन्होंने कहा कि मेडिकल की पाठ्यपुस्तकों में इस शब्द का प्रयोग ही नहीं होता ।
भारत की ७१% जनसंख्या ग्रामों में है किन्तु केवल ३३% डॉक्टर ग्रामों में सेवा देते हैं । अर्थात् ग्रामीण ७१ पर ३३ की तुलना में शहरी २९ पर ६७ !अर्थात् डॉक्टर गाँव की तुलना में नगरों में रहना पसप्द करते हैं और यह अन्तर पाँच गुणा का है!इस गरीब देश के लोगों पर टैक्स नगाकर औसतन १७० लाख रूपये एक डॉक्टर बनाने में खर्च किये जाते हैं https:// timesofindia. indiatimes.com/articleshow_comments/3948369.cms , उस १७० लाख रूपये में ग्रामीण लोगों का पैसा भी तो है!